जमनालाल बजाज का जीवन परिचय | Jamnalal Bajaj Biography in hindi

Telegram GroupJoin Now

जमनालाल बजाज की जीवनी :- आज कि इस पोस्ट में हम बताने जा रहे हैं जमनालाल बजाज भारत के एक उद्योगपति, मानवशास्त्री और स्वतंत्रता सेनानी थे। वे महात्मा गांधी के अनुयायी थे और उनके बहुत करीबी व्यक्ति थे। गांधीजी उन्हें अपने बेटे की तरह मानते थे। जमनालाल बजाज 1920 में कांग्रेस के कोषाध्यक्ष बने थे और इस पद पर वे जीवन भर रहे। उन्होंने वर्धा में ‘सत्याग्रह आश्रम’ की स्थापना की थी। इसके अलावा गौ सेवा संघ, गांधी सेवा संघ, सस्ता साहित्य मण्डल आदि संस्थाआं की स्थापना भी उनके द्वारा की गई। जमनालाल बजाज जाति-भेद के विरोधी थे और उन्होंने हरिजन उत्थान के लिए भी प्रयास किया। उनकी याद में सामाजिक क्षेत्रों में सराहनीय कार्य करने के लिये ‘जमनालाल बजाज पुरस्कार’ की स्थापना की गयी है। तो आइए जानते है जमनालाल बजाज के जीवन परिचय के बारे में।

जमनालाल बजाज का जीवन परिचय:-

  • नाम – जमनालाल बजाज
  • प्रसिद्ध नाम – गांधी का पांचवा बेटा
  • जन्म – 4 नवंबर 1889
  • जन्म स्थान – जयपुर , राजस्थान
  • माता – बिरधीबाई
  • पिता – कनीराम
  • पत्नी – जानकी देवी
  • मृत्यु – 11 फरवरी 1942
  • मृत्यु स्थान – वर्धा , महाराष्ट्र

जमनालाल बजाज का प्रारंभिक जीवन:-

जमनालाल बजाज का जन्म 9 नवम्बर, 1889 को काशी का वास, सीकर, राजस्थान में हुआ था। उनके पिता का नाम कनीराम और उनकी माता का नाम बिरदीबाई था।वर्धा के एक सेठ बछराज ने उन्हें 5 वर्ष की आयु में ही गोद ले लिया सेठ बच्छराज सीकर के रहने वाले थे और उनके पूर्वज लगभग सवा 100 वर्ष पूर्व नागपुर चले गए थे। ऐश्वर्य एवं विलासिता पूर्ण वातावरण बालक जमनालाल को दूषित ना कर पाया क्योंकि वे तो बचपन से ही अध्यात्म की ओर झुके हुए थे।क्‍योंकि उनका झुकाव तो बचपन से अध्यात्म की ओर था। जमनालाल की सगाई दस साल की आयु में ही तय कर दी गई थी। इसके तीन साल बाद जब जमनालाल 13 वर्ष के हुए और जानकी 9 वर्ष की हुई, तो उनका विवाह धूमधाम से वर्धा में हुआ। जमनालाल बजाज ने खादी और स्वदेशी को अपनाया और अपने वेशकीमती वस्त्रों की होली जलाई।



योगदान:-

अखिल भारतीय कोषाध्यक्ष की हैसियत से खादी के उत्पादन और उसकी बिक्री बढ़ाने के विचार से जमनालाल बजाज ने देश के दूर-दराज भागों का दौरा किया, ताकि अर्धबेरोजगारों को फायदा पहुंच सके।1935 में गांधीजी ने ‘अखिल भारतीय ग्रामोद्योग संघ’ की स्थापना की। इस नये संघ के लिए जमनालाल बजाज ने बडी खुशी से अपना विशाल बगीचा सौंप दिया, जिसका नाम गांधीजी ने स्वर्गीय मगनलाल गांधी के नाम पर ‘मगनाडी’ रखा। 1936 में ‘अखिल भारतीय हिंदी साहित्य सम्मेलन’, नागपुर के बाद ही जमनालाल जी ने वर्धा में देश के पश्चिम और पूर्व के प्रांतों में हिंदी प्रचार के लिए, ‘राष्ट्रभाषा प्रचार समिति’ की स्थापना की और उसके लिए राशि इकट्ठा की। वास्तव में वे देश के पहले नेता थे, जिन्होंने वर्धा में अपने पूर्वजों के ‘लक्ष्मीनारायण मंदिर’ के द्वार 1928 में ही अछूतों के लिए खोल दिये थे। जमनालाल बजाज और उनकी पत्नी जानकी देवी अतिथियों की पसंद का बहुत खयाल रखते थे।

जमनालाल बजाज की बचपन में शादी:-

जब जमनालाल बजाज 10 वर्ष के थे तभी उनकी सगाई जानकी से कर दी गई। तीन वर्ष पश्चात जमनालाल जब 13 वर्ष के हुए तथा जानकी 9 वर्ष की हुई तब उन दोनों का वर्धा में ही धूमधाम से विवाह करवा दिया गया। जमनालाल बजाज ने स्वदेशी एवं खादी को चुना तथा अपने बेशकीमती वस्तुओं की होली जला दी। उन्होंने अपने बच्चों को किसी फैशनेबल पब्लिक विद्यालय में ना भेजकर विनोबा कि सत्याग्रह आश्रम में अपनी इच्छा से दाखिला करा दिया। जमनालाल बजाज का कहना था कि उनके बच्चे तथा पत्नी को कोई सुख सुविधा या पदवी उनकी स्वयं की योग्यता को देखकर मिले, ना कि बजाज के पुत्र होने के कारण मिले।

जमनालाल बजाज के जीवन के प्रमुख कार्य:-

जमनालाल बजाज ने अपने अंतिम त्याग में देश के पशुधन के कार्य को चुना और गाय को उसका प्रतीक चुना ।जमनालाल बजाज इस कार्य में एकाग्रता और लगन के साथ जुट गए। जीस की हम अपने शब्दो में कोई मिसाल नहीं दे सकते । जमनालाल जी का प्रथम उद्देश्य गो-सेवा करना था। ये काम देश में पहले भी चल रहा था लेकिन बिलकुल कछुआ चाल चल रहा था। इस बात से जमनालाल जी को बिलकुल संतोष नहीं था।जमनालाल जी अपने कार्यकर्ताओं केवल आर्थिक मदद ही नहीं करते थे वो उनके बच्चो की शिक्षा चिकित्सा आदि की व्यवस्था भी उपलब्ध करवाते थे। और उन लोगो के बच्चों की सूची भी रखते थे और शादी का पूरा खर्च उठाते थे ।इस कारण गाँधी जी जमनालाल जी को “शादी काका” के नाम से भी पुकारते थे।

पदवी:-

1918 में सरकार ने जमनालाल बजाज को ‘राय बहादुर’ की पदवी से अलंकृत किया। इसके लिए जब जमनालाल बजाज ने गांधीजी से सलाह मांगी तो उन्होंने कहा- “नये सम्मान का सदुपयोग करो। सम्मान और पदवी इत्यादि खतरनाक चीजे हैं। उनका सदुपयोग की जगह दुरुपयोग अधिक हुआ है। मैं चाहूंगा कि तुम उसका सदुपयोग करो। यह तुम्हारी देशभक्ति या आध्यात्मिक उन्नति के आडे नहीं आयेगा। 1920 में कलकत्ता अधिवेशन में असहयोग का प्रस्ताव पारित हुआ, तो जमनालाल जी ने अपनी को पदवी लौटा दिया ।

त्याग तथा दान:-

अंग्रेज सरकार द्वारा जमनालाल को दी गई “राय बहादुर” की पदवी को उन्होंने त्याग दिया। उन्होंने अपनी ‘रिवाल्वर व बंदूक’ जमा करवा कर अपना लाइसेंस वापस ले लिया। अपने सारे मुकदमे वापस ले लिए और अदालतों का भी बहिष्कार कर दिया। आजादी की लड़ाई के लिए जिन वकीलों ने भी अपनी वकालत छोड़ दी थी उनके निर्वाह के लिए ₹100000 का उन्होंने कांग्रेस को दान दिया।

जमनालाल बजाज का जयपुर सत्याग्रह:-

जमनालाल के काफी प्रयत्नों के कारण ही जयपुर में साल 1931 में ‘जयपुर राज्य प्रजा मंडल’ की स्थापना हुई । ये मंडल 1936 में सक्रिय रूप से कार्य करने लगा। लेकिन अचानक जयपुर में 30 मार्च 1938 को राज्य की सरकार ने एक आदेश निकला की सरकार की अनुमति के बिना कोई भी जयपुर में किसी भी तरह की सार्वजानिक संस्था की स्थापना नहीं कर सकता है । इस आदेश का सीधा निशाना प्रजा मंडल की व्यवस्थाओ को व्यर्थ करना था। और मंडल का वार्षिक अधिवेशन 8 और 9 मई जमानालाल बजाज की अध्यक्षता में पहले ही घोषित किया जा चूका था। उस समय जयपुर के एक अंग्रेज दिवान बीकैम्प सेंटजान को जमनालाल जी की बढ़ती लोकप्रियता बिलकुल पसंद नहीं थी। 4 जुलाई 1938 को इस मामले और आग पकड़ ली और बात काफी आगे बढ़ गई।

प्रजामंडल की स्थापना:-

असहयोग आंदोलन के चलते जमनालाल ने ब्रिटिश शासन के विरुद्ध तीखा भाषण दिया एवं सत्याग्रहीयों का नेतृत्व किया इस पर उन्हें तथा विनोबा को 18 जून 1921 को गिरफ्तार कर लिया गया। विनोबा को महीने भर के लिए सजा मिली इसके बाद छोड़ दिया गया परंतु जमनालाल को डेढ़ साल का सश्रम कारावास तथा ₹3000 का जुर्माना चुकाना पड़ा।जमुनालाल जी के अथाह प्रयत्नों के कारण 1931 में “जयपुर राज्य प्रजामंडल” की स्थापना हुई। जयपुर राज्य ने 30 मार्च 1938 को एक आदेश निकाला जिसके अनुसार सरकार की आज्ञा के बिना वहां कोई भी सार्वजनिक संस्था की स्थापना नहीं कर सकता है इसका मुख्य उद्देश्य प्रजामंडल के कार्यों तथा गतिविधियों को समाप्त करना था।

मृत्यु:-

1941 के व्यक्तिगत सत्याग्रह में जेल से रिहार्इ के बाद जमनालाल जी महात्मा गाँधी की सहमति से आनंदमयी मां से मिलने और अपनी आध्यात्मिक महत्त्वाकांक्षा को संतुष्ट करने का उपाय जानने की दृष्टि से देहरादून गये। वहाँ से वर्धा लौटने के बाद मस्तिष्क की नस फट जाने के कारण 11 फ़रवरी, 1942 में जमनालाल जी की अचानक मृत्यु हो गई ।

FAQ

प्रश्न. जमनालाल बजाज के पिता का क्या नाम है?

उत्तर:- कनीराम

प्रश्न. जमनालाल बजाज के माता का क्या नाम है?

उत्तर:- बिरधीबाई

प्रश्न. जमनालाल बजाज के पत्नी का क्या नाम है?

उत्तर:- जानकी देवी

प्रश्न.जमनालाल बजाज का जन्म कब हुआ?

उत्तर:- 4 नवंबर 1889

प्रश्न. जमनालाल बजाज की मृत्यु कब हुई?

उत्तर:- 11 फरवरी 1942

प्रश्न. जमनालाल बजाज की मृत्यु स्थान कहाँहै ?

उत्तर:- वर्धा , महाराष्ट्र

यह भी पढ़े:-

Tags: जमनालाल बजाज का जीवन परिचय in hindi pdf download.

Telegram GroupJoin Now