मकर संक्रांति पर निबंध | मकर संक्रांति कब, क्यों, कहाँ, कैसे मनाई जाती हैं

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मकर संक्रांति पर निबंध | मकर संक्रांति कब, क्यों, कहाँ, कैसे मनाई जाती हैं

मकर संक्रांति त्योहार:-

मकर संक्रांति के पर्व को कहीं-कहीं उत्तरायण भी कहा जाता है। मकर संक्राति एक ऐसा त्योहार है जिस दिन किए गए काम अनंत गुणा फल देते हैं. मकर संक्रांति को दान, पुण्य और देवताओं का दिन होता हैं। मकर संक्रांति से ही ऋतु परिवर्तन भी होने लगता है. मकर संक्रांति से सर्दियां खत्म होने लगती हैं और वसंत ऋतु की शुरुआत होती है मकर संक्रांति त्योहार हिंदू देवता सूर्य भगवान को समर्पित है। जब सूर्य धनु राशि से मकर राशि में या दक्षिणायन से उत्तरायण में प्रवेश करता है तो संक्रांति का पर्व मनाया जाता है। संक्रांति का अर्थ है सूर्य का एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश। भारतीय ज्योतिष के अनुसार, बारह राशियों को माना जाता है: मेष, वृष, मिथुन, कर्क, सिंह, कन्या, तुला, वृश्चिक, धनु, मकर, कुंभ और मीन, आमतौर पर 14 जनवरी को जब सूर्य धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करता है। यदि कर उत्तरायण हो तो मकर संक्रांति मनाई जाती है।

मकर संक्रांति त्योहार मुहूर्त:-

मकर संक्रांति के पर्व को कहीं-कहीं उत्तरायण भी कहा जाता है। मकर संक्रांति गुरुवार को प्रात: 8 बजकर 30 मिनट बजे से आरंभ होगी। ज्योतिष के अनुसार, यह बहुत ही शुभ समय माना जाता है.

  • तिथि – 14 जनवरी, 2021 (गुरुवार)
  • पुण्य काल मुहूर्त – सुबह 8:30 से शाम 5.46 तक
  • महापुण्य काल मुहूर्त – सुबह 8:30 से 10.15 तक


मकर संक्रांति पर क्या करें:-

इस दिन प्रातःकाल स्नान कर लोटे में लाल फूल और अक्षत डाल कर सूर्य को चढ़ाया जाता हैं. मकर संक्रांति के दिन विशेषकर गुड़, तिल, खिचड़ी, कबल आदि देने का महत्व होता हैं।   

मकर संक्रांति के बारे में जानकारी:-

  • आवृत्ति – वार्षिक
  • समय – 1 दिन
  • सुरुआत तिथि – पौष / माघ
  • समाप्ति तिथि – पौष / माघ
  • महीना – जनवरी
  • कारण – सूर्य धनु से मकर राशि या दक्षिणायन से उत्तरायण की ओर स्थानांतरित होता है।
  • उत्सव विधि – सूर्य भगवान की उपासना, तिल-गुड़ से बनी मिठाइयाँ, खिचड़ी, दान-दक्षिणा, गंगा स्नान,पतंगबाजी, मेला।
  • महत्वपूर्ण जगह – प्रयागराज, गंगा सागर, पवित्र नदियाँ।



मकर संक्रांति से जुड़ी पौराणिक कथाएं:-

  • मकर संक्रांति शनिदेव मकर राशि के स्वामी हैं, कहा जाता है कि इस दिन भगवान सूर्य अपने पुत्र शनि से मिलने स्वयं उसके घर जाया करते हैं। अत: इस दिन को मकर संक्रांति के नाम से जाना जाता है।
  • मकर संक्रांति के दिन ही गंगाजी भागीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होकर सागर में जा उनसे मिली थीं। यह भी कहा जाता है कि गंगा को धरती पर लाने वाले महाराज भगीरथ ने अपने पूर्वजों के लिए इस दिन तर्पण किया था। इसलिए मकर संक्रांति पर गंगा सागर में मेला लगता है।
  • मकर संक्रांति के दिन भगवान विष्णु ने असुरों का अंत कर युद्ध समाप्ति की घोषणा की एवं सभी असुरों के सिरों को मंदार पर्वत के नीचे दबा दिया था। माता यशोदा ने जब कृष्ण जन्म के लिए व्रत किया था तब सूर्य देवता उत्तरायण काल में पदार्पण कर रहे थे और उस दिन मकर संक्रांति थी। माना जाता उसी दिन से मकर संक्रांति व्रत का प्रचलन सुरू हुआ।

मकर संक्रांति का महत्व:- 

मकर संक्रांति हिंदू धर्म में सूर्य का दक्षिण से उत्तर दिशा की ओर गमन करना बेहद शुभ माना गया है। कि जब सूर्य पूर्व से दक्षिण की ओर चलता है, इस दौरान सूर्य की किरणों को खराब माना गया है, लेकिन जब सूर्य पूर्व से उत्तर की ओर गमन करने लगता है, तब उसकी किरणें सेहत और शांति को बढ़ाती हैं। इस दौरान सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है इसलिए इसे मकर संक्रांति भी कहा जाता है, जो कि हिंदू धर्म में एक बड़ा पर्व है।उत्तरायण की वजह से रातें छोटी और दिन बड़े होने लगते हैं। जब सूर्य उत्तरायण होता है तो यह तीर्थ और उत्सवों का समय होता है।

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