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राजस्थान की प्रमुख लोक देवियां List
करणी माता
- करणी माता चारणों की कुलदेवी एवं बीकानेर के राठौड़ों की इष्ट देवी है।
- करणी माता का जन्म सुआप गांव (जोधपुर) में हुआ था।
- करणी माता के पिता का नाम – मेहाजी जी चारण।
- करणी माता के माता का नाम – देवलबाई।
- करणी माता का बचपन का नाम – रिद्धि बाई।
- करणी माता के उपनाम – डोकरी, चूहों की देवी, जोगमाया, जगत माता का अवतार आदि।
- सफेद चील को करणी माता का रूप माना जाता है।
- करणी माता का मुख्य मंदिर बीकानेर से 35 किलोमीटर दूर देशनोक में है।
- इस मंदिर का प्रवेश द्वार ( सिंह द्वार ) संगमरमर से बनाया गया है ।
- देशनोक राष्ट्रीय राजमार्ग 89 पर स्थित है ।
- देशनोक बीकानेर में करणी माता के मंदिर की नींव स्वयं करणी माता ने रखी थी।
- यह शुभ कार्य बीकानेर के सेठ चाँदमल ढढ्ढा ने करवाया था ।
- करणी माता ने जोधपुर-बीकानेर के राज्यों को स्थापित कराने में महत्वपूर्ण सहयोग दिया ।
- करणी माता के इस मूल मंदिर का निर्माण राव राजा जैतसिंह द्वारा 19वीं शताब्दी में करवाया गया।
- करणी माता के इस मंदिर का वर्तमान भव्य स्वरूप महाराजा सूरत सिंह ने तैयार करवाया था।
- महाराजा गंगासिंह ने करणी माता के मंदिर में चाँदी के किवाड़ भेंट किए थे ।
- करणी माता के इस मंदिर में सर्वाधिक चूहे पाए जाते हैं, इसलिए इस मंदिर को चूहों का मंदिर भी कहा जाता है।
- अलवर के बख्तावर सिंह ने माता के मंदिर में स्वर्ण पाट भेंट किए । माताजी का मंदिर ‘मठ’ माना जाता है ।
- बीकानेर क्षेत्र में करणी माता (चूहों की देवी) को शक्ति एवं जगत माता का अवतार माना जाता है ।
- करणी माता के इस मंदिर में पाए जाने वाले सफेद चूहों को काबा कहा जाता है।
- चारण समाज के व्यक्ति इन चूहों को अपना पूर्वज मानते है ।
- करणी माँ की गायों का ग्वाला दशरथ मेघवाल गायों की रक्षा करते हुए मरा था ।
- करणी माता के मंदिर के मुख्य दरवाजे के पास करणी माता के ग्वाले दशरथ मेघवाल का देवरा है ।
- करणी माता के इस मंदिर में दो कढ़ाई स्थित है, जिनके नाम – “सावन-भादो कड़ाइयाँ” हैं।
- करणी माता के इस मंदिर में प्रतिवर्ष चैत्र एवं आश्विन के नवरात्र में मेला लगता है।
- करणी माता ने अपनी बहन गुलाब कंवर के बेटे लखन को गोद लिया था, जो रक्षाबंधन के दिन श्रावण मास की पूर्णिमा को कोलायत झील (बीकानेर) में डूब कर मर गया था। इसलिए कोलायत बीकानेर में कपिल मुनि के मेले में चारण समुदाय के लोग नहीं जाते हैं।
- गोधन पर आक्रमण करने वाले राव कान्हा का इन्होंने वध किया और भय के मारे मांग खाने वाले चारणों को इन्होंने चूहा बनने का शाप दिया । ऐसा माना जाता है कि करणी माता के मंदिर में चूहों की अधिकता इसी कारण है और जब माता प्रसन्न होगी तभी इनकी सद्गति होगी ।
- करणी माता के इस मंदिर में सफेद चूहों के दर्शन करणी माता के दर्शन माने जाते हैं।
- करणी माता का मंदिर मठ कहलाता है।
- करणी माता की इष्ट देवी – तेमड़ा माता।
- करणी माता ने मेहरानगढ़ दुर्ग की नींव रखी थी।
- ऐसा माना जाता है कि करणी माता ने ही देशनोक कस्बा बसाया था।
- करणी माता के मंदिर में पुजारी चारण समुदाय के लोग होते हैं।
- ऐसी मान्यता है कि यदि पूजा करते समय किसी व्यक्ति के सिर पर चूहा चढ जाता है तो उसे शुभ माना जाता है ।
- करणी माताजी ने जोधपुर के मेहरानगढ दुर्ग की नींव स्वयं अपने हाथ से रखी थी साथ ही राव जोधा के पुत्र राव बीका के बीकानेर राज्य की स्थापना भी करणी माता के आशीर्वाद से ही हुईं थी ।
- करणी माताजी ने विक्रम संवत् 1595 की चैत्र शुक्ला नवमी ‘को घिनेरू की तलाई नामक स्थान पर श्री करणीजी ने महाप्रयाग कर लिया ।
शीतला माता
- शीतला माता के उपनाम – चेचक की देवी, सेढ़ल माता, बोदरी देवी, महामाई, बच्चों की सरंक्षिका आदि।
- इनका प्रमुख स्थान शील की डूंगरी, चाकसू (जयपुर) है ।
- शीतला माता का मंदिर चाकसू (जयपुर) में है।
- शीतला माता एक ऐसी माता है, जिसकी खण्डित मूर्ति की पूजा होती है ।
- चेचक की देवी, बच्चों की पालनहार व सेढ़ल माता इनके उपनाम है।
- चैत्र कृष्ण अष्टमी (शीतला अष्टमी) के दिन मेला भरता है। इसी दिन मारवाड़ में घुडला पर्व मनाया जाता है।
- शीतला माता का मेला गधो के मेले के रूप में प्रसिद्ध है।
- इनके मंदिर को सुहाग मंदिर के नाम से जाना जाता है ।
- शीतला माता का वाहन गधा होता है ।
- शीतला माता के मंदिर का निर्माण सवाईंमाधो सिंह ने चाकसू में शील की डूंगरी पर बनवाया।
- शीतला माता के इस मंदिर में मूर्ति की जगह भाषण (पत्थर) के खंड है।
- इनका पुजारी कुम्हार होता है ।
- शीतला माता का प्रतीक चिन्ह ‘दीपक’ (मिट्टी की कटोरिया) होती है ।
- बासडिया प्रसाद बनाया जाता हैं
- चेचक की देवी के रूप में शीतला माता प्रसिद्ध है । शीतला माता को सेढ़ल माता, बोदरी माता, बच्चों की संरक्षिका आदि उपनामों से भी जाना जाता है ।
- चाकसू में प्रतिवर्ष शीतलाष्टमी के दिन गधों के मेले का आयोजन होता है । प्राय: जांटी (खेजडी) को शीतला माता मानकर पूजा जाता है ।
- बांझ स्त्रियाँ संतान प्राप्ति हेतु शीतला माता की पूजा करती है । शीतला माता के मंदिर को सुहाग मंदिर के रूप में माना जाता है ।
- शीतला माता का प्राचीन मंदिर उदयपुर में गोगुंदा गांव में स्थित है।
राणी सती माता
- झुंझुनू जिले की राणी सती लोक देवी के रूप में प्रसिद्ध है ।
- इनका वास्तविक नाम नारायणी बाई अग्रवाल है। इन्हें दादी जी के उपनाम से भी जाना जाता है।
- राणी सती का जन्म महम ग्राम (डोकवा) के अग्रवाल घुड़सालम के यहाँ हुआ ।
- राणी सती का विवाह हिसार के तनधनदास के साथ हुआ । ये एक कुशल योद्धा थे ।
- सती माता के इस मंदिर में प्रतिवर्ष भाद्रपद अमावस्या को मेला लगता है।
- सती माता को अग्रवाल जाति की कुलदेवी माना जाता है ।
- हिसार के नवाब की रक्षा करते हुए धनदास की मृत्यु हो गई तब नारायणी बाईं सन् 1652 में मार्गशीर्ष कृष्णा नवमीं को अपने सतीत्व की रक्षा के लिए सती हुई ।
- 1987 ईस्वी में दिवराला (सीकर) रूपकंवर सती महिला कांड के बाद रानी सती के इस मेले पर रोक लगा दी गई।
- झुंझुनू में राणी सती का विशाल संगमरमरी मंदिर है ।
- इनके परिवार में कुल 13 स्त्रियां सती हुई ।
- लोक भाषा में राणी सती दादीजी के नाम से भी प्रसिद्ध है।
- विश्व का सबसे बड़ा सती माता का मंदिर झुंझुनू जिले में स्थित है।
- दूसरा सबसे बड़ा मंदिर खेमीसती का झुंझुनू में है।
आई माता
- आई माता के बचपन का नाम जीजाबाई था।
- आई माता सिरवी जाति के क्षत्रिय लोगों की कुल देवी है ।
- आई माता का जन्म अंबापुर (गुजरात) में हुआ था।
- आई माता का प्रमुख मंदिर बिलाड़ा (जोधपुर) में हैं ।
- इस मंदिर में दीपक की ज्योति से कैसर टपकती है ।
- आई जी माता रामदेवजी की शिष्या थी ।
- सिरवी लोग आईं माता के मंदिर को दरगाह कहते है ।
- माता का थान बडेर कहलाता है, इसमें मूर्ति नहीं होती है ।
- हर महीने की शुक्ला द्वितीया को आई माता की पूजा होती है ।
- आई माता के मंदिर में गुर्जर जाति का प्रवेश निषिद्ध है।
- गुजरात के अंबापुर गाँव में बीका डाबी राजपूत के घर विक्रम संवत् 1472 भादवा सुदी बीज शनिवार को सुंदर कन्या जीजी बाईं ( आईं माता के बचपन का नाम ) का जन्म हुआ ।
- आई पंथी आईं माता द्वारा बनाए गए 11 नियमों का पालन करने के लिए सूत के धागे की 11 गाँठों वाली बेल पुरुष के हाथ पर तथा महिलाओं के गले में बाधी जाती है ।
- आईं माता नवदुर्गा अर्थात देवी का अवतार मानी जाती हैं ।
- सिरवी जाति राजपूतों से निकली एक कृषक जाति मानी जाती है ।
सकराय/शाकम्भरी माता
- शाकम्भरी माता का मुख्य मंदिर उदयपुर वाटी (झुँझुनु) में है।
- सकराय माता खण्डेलवाल समाज की कुल देवी मानी जाती हैं।
- सकराय माता ने अकाल से पीडित जनता को बचाने के लिए फल सब्जियां, कंद-मूल उत्पन किये । इस शक्ति के कारण ये शाकम्भरी कहलाई । अर्थात शाक /सब्जियों की रक्षक देवी इनका उपनाम है।
- सकराय माता का मंदिर सीकर जिले के खंडेला व झूझूनूं जिले के उदयपुर वाटी के मध्य स्थित है ।
- शाकम्भरी माता अजमेर के चौहानों की कुलदेवी है ।
- शाकम्भरी माता का मंदिर सांभर में है तथा एक मंदिर सहारनपुर (उत्तरप्रदेश) में स्थित है ।
- इस शक्ति पीठ पर नाथ सम्प्रदाय का वर्चस्व रहा है । ‘
- शंकरा या सकराय माता को भांतिवश शाकंभरी माता के नाम से भी पुकारते है ।
- देवी का प्राचीन और वास्तविक नाम शंकरा है । शंकरा शब्द का अपभ्रंश और प्रचलित रूप सकराय हो गया ।
नारायणी माता या करमेती माता
- नारायणी माता को नाईं जाति के लोग अपनी कुलदेवी मानते है ।
- मीणा समाज की अराध्य देवी मानी जाती है।
- इनका मंदिर अलवर जिले के राजगढ तहसील में बरवा डूंगरी में स्थित है ।
- नारायणी माता का मंदिर 11वीं सदी में बनाया गया ।
- वर्तमान मे मीणा व नाईं जाति के बीच नारायणी माता को लेकर विवाद चल रहा है ।
- अलवर जिले में नारायणी माता के पुजारी, मीणा होते है ।
- यहाँ पर नारायणी नामक महिला अपने पति के साथ सती हुई थी ।
जीण माता
- जीण माता के उपनाम – चौहानों की कुलदेवी, मधुमक्खियों की देवी, शेखावाटी क्षेत्र की लोक देवी आदि।
- जीण माता माता का जन्म धांधू गांव (सीकर) में हुआ था।
- वास्तविक नाम – जयंती बाई
- जीण माता के पिता का नाम – धंधराय।
- अजमेर के चैहानों की कुलदेवी मानी जाती है।
- जीण माता चौहान वंश की अराध्य देवी है।
- जीण माता का प्रसिद्ध मंदिर हर्ष की पहाड़ी पर रेवासा (सीकर) में स्थित हैं, इनके इस मंदिर का निर्माण पृथ्वीराज चौहान प्रथम के समय राजा हट्टड़ द्वारा करवाया गया।
- जीण माता को ढाई प्याले शराब चढ़ती है, जीण माता को पहले बकरे की बलि दी जाती है। वर्तमान में केवल बकरे के कान चढ़ाए जाते हैं।
- जीण माता के इस मंदिर में प्रति वर्ष चैत्र एवं आश्विन के नवरात्र में मेला लगता है।
- जीण माता के मेले में मीणा जनजाति के लोग मुख्य रूप से भाग लेते है।
- सभी देवी-देवताओं में जीण माता का लोकगीत(भजन/आरती) सबसे लंबा है।
- यह सबसे लम्बे लोक गीतो वाली लोक देवी है।
- जीण माता के इस मंदिर में जीण माता की अष्टभुजी प्रतिमा विराजमान है।
महामाई/महामाया
- महामाई माता का मुख्य स्थल मावली (उदयपुर) में है ।
- महामाया को शिशू रक्षक लोकदेवी के रूप में श्रद्धा से पूजा जाता है ।
- गर्भवती स्त्रियां अपनी प्रसव की पूर्ति के लिए और बच्चे को स्वस्थ रखने के लिए मालवी की महामाया की पूजा करती हैं ।
कैला देवी
- कैला देवी को करौली के यदुवंशी राजवंश (यादवों) की कुलदेवी माना जाता है।
- कैला देवी का अवतार- अंजनी माता (हनुमानजी की माता)
- कैला देवी का मंदिर त्रिकूट पर्वत की घाटी में करौली जिले में स्थित है।
- कैला देवी के इस मंदिर का निर्माण गोपाल सिंह द्वारा 19वीं शताब्दी में करवाया गया।
- कैला देवी (करौली) का मंदिर राजस्थान का एकमात्र दुर्गा माता का मंदिर है जहाँ बलि नहीं दी जाती अर्थात कैला देवी को कभी मांस का भोग नहीं लगता है।
- कैला देवी के इस मंदिर के सामने बोहरा भक्त की छतरी स्थित है।
- कैलादेवी के मंदिर में कैला देवी के साथ चामुंडा माता की मूर्ति भी स्थित है।
- भक्त लोग कैला देवी की आराधना में प्रसिद्ध लांगुरिया गीत गाते हैं।
- कैलादेवी गुर्जरों व मीणाओं की इष्टदेवी है। लांगुरिया नृत्य हनुमानजी का प्रतीक है ।
- कैला देवी के इस मंदिर में प्रति वर्ष नवरात्रों में (चैत्र शुक्ल अष्टमी को) इनका विशाल ‘लक्खी मेला’ त्रिकूट पर्वत की चोटी पर भरता है ।
- कंस द्वारा देवकी की कन्या का वध करने पर यही कन्या कैलादेवी के रूप में त्रिकूट की घाटी में विराजित है।
- जब तक कालीसिल नदी में स्नान नहीं किया जाता है, तब तक कैलादेवी की तीर्थयात्रा भी सफल नहीं मानी जाती।
- केला देवी का घुटकन नृत्य प्रसिद्ध है, जिसे गुर्जर एवं मीणा जाति के लोग करते हैं।
- पुश्तैनी बीमारी को बोहरा का पुजारी झाड़-फूंक कर ठीक कर देता है।
शिला देवी
- शिला देवी आमेर के कछवाहा वंश की कुल देवी है।
- शिलादेवी का प्रमुख स्थान आमेर (जयपुर) में है ।
- शिला के रूप में मिलने कारण शिला देवी के रूप में प्रसिद्ध है।
- आमेर के महाराजा मानसिंह प्रथम द्वारा पूर्वी बंगाल के राजा केदार को पराजित कर ‘जस्सोर’ नामक स्थान से अष्टभुजी भगवती की मूर्ति 16वीं शताब्दी में आमेर लाए थे। आमेर लाकर उन्होंने आमेर दुर्ग में स्थित जलेब चौक के दक्षिणी-पश्चिमी कोने में मंदिर बनवाया था। भगवती महिषासुर मर्दिनी की मूर्ति के ऊपरी हिस्से पर पंचदेवों की प्रतिमाएं उत्कीर्ण है ।
- मानसिंह द्वितीय ने शिलादेवी के मंदिर में चाँदी के किवाड़ भेंट किये।
- इस देवी का मंदिर सफेद संगमरमर से निर्मित है जो स्थापत्य कला की उत्कृष्ट कृति है ।
- शिला देवी के बाई और अष्ट धातु की हिंगलाज माता की मूर्ति प्रतिष्ठित है।
- इस मंदिर का पुनर्निर्माण (वर्तमान स्वरूप) मिर्जा राजा जयसिंह ने करवाया था।
- शिलादेवी के मंदिर में जल व मदिरा के रूप में भक्तों को चरणामृत दिया जाता है ।
- यहां वर्ष में दो बार चैत्र और आश्विन के नवरात्र में मेला लगता है।
- शिला देवी के इस मंदिर में सबसे पहले नरबलि तथा बाद में छागबलि दी जाती थी। जिसे वर्तमान समय में बंद कर दिया गया है।
- आमेर शिला माता के गुजियां व नारियल का प्रसाद चढ़ाया जाता है।
- शिला देवी को ढाई प्याला शराब चढ़ती है, यहां पर भक्तों को शराब एवं जल का चरणामृत दिया जाता है।
- यहां भैरव जी का भी मन्दिर है। माता के दर्शन के बाद भैरव मन्दिर में दर्शन करना जरूरी माना जाता है।
ज्वाला माता
- ज्वाला माता जोबनेर के खंगारोत राजवंश की कुलदेवी है।
- ज्वाला माता का प्रसिद्ध मंदिर जोबनेर(जयपुर) में स्थित है।
- प्रतिवर्ष चैत्र व अश्विन नवरात्रों में मेला लगता है।
- पौराणिक मान्यता के अनुसार, भगवान शिव को प्रथम पत्नी भागवती सती का जानु-भाग ( घुटना ) जोबनेर पर्वत पर आकर गिरा, जिसे माता का प्रतीक मानकर ज्वाला माता/जालपा देवी के नाम से पूजा जाने लगा।
जमुवाय माता
- जमुवाय माता को कछवाहा राजपूतों की कुलदेवी माना जाता है।
- ज़मवाय माता को ही ‘अन्नपूर्णा’ के नाम से भी जानते हैं।
- जमवाय माता का प्रसिद्ध मंदिर जमवारामगढ़ (जयपुर) में स्थित है।
- जयपुर में स्थित यह माता अन्नपूर्णा के नाम से जानी जाती है ।
- जमवाय माता के बारे में कहा जाता है, कि सतयुग में मंगलायू , त्रेतायुग में हड़वाय द्वापर युग में बढ़वाय और कलियुग में जमुवाय माता के रूप मे प्रसिद्ध हुईं ।
- इस देवी के मंदिर में मद्य का भोग एवं पशुबलि प्रारंभ से ही वर्जित है।
जिलाणी माता
- अलवर जिले के बहरोड़ कस्बे की प्राचीन बावडी के पास लोकदेवी जिलाणी माता का प्रसिद्ध मंदिर है ।
- जिलाणी माता ने हिन्दुओं की रक्षा की और इन्हें मुसलमान बनने से बचाया ।
- लोकदेवी जिलाणी माता के मंदिर में प्रतिवर्ष दो विशाल मेलों का आयोजन किया जाता है ।
सचिया माता
- इनका प्रमुख स्थल ओसिया (जोधपुर) में है।
- ओसियां का प्राचीन नाम उकेश या उपकेश पट्टन था।
- सचिया माता ओसवालो की कुलदेवी है।
- सचिया माता को सांप्रदायिक सद्भाव की देवी भी कहा जाता है।
- सचिया माता का प्रसिद्ध मंदिर ओसियां (जोधपुर) में स्थित हैं।
- सचिया माता के इस मंदिर का निर्माण 11वीं शताब्दी में प्रतिहार शैली में परमार राजकुमार उपलदेव ने करवाया था।
- सचिया माता की वर्तमान प्रतिमा कसौरि पत्थर की है।
- यह प्रतिमा वस्तुत: महिषासुर मर्दिनी देवी की हैं।
चामुंडा माता
- चामुंडा माता को मारवाड़ के राठौड़ों की ईष्ट देवी माना जाता है।
- चामुंडा माता को प्रतिहार/परिहारों की शाखा इंदावंश अपनी कुलदेवी के रूप में पूजते हैं।
- चामुंडा माता का मंदिर मेहरानगढ़ (जोधपुर) में है।
- चामुंडा माता के इस मंदिर में वर्ष 2008 के आश्विन नवरात्र में भगदड़ मच जाने के कारण कई लोगों की मृत्यु हुई थी। इस भगदड़ की जांच के लिए जसराज चोपड़ा कमिटी गठित की गई।
- चामुंडा माता का एक अन्य मंदिर अजमेर में है, जो पृथ्वीराज चौहान तृतीय एवं चंदरबरदाई की ईष्ट देवी है।
- कालिका माता ने दैत्य शुभ-निकुंभ के सेनापति चण्ड और मुण्ड का वध किया तभी से कालिका माता को ‘चामुंडा माता’ के नाम से पुकारने लगे ।
नागणेची माता
- नागणेची माता मारवाड़ के राठौड़ वंश की कुल देवी है ।
- 18 भुजाधारी देवी नागणेची माता का मंदिर मंडोर (जोधपुर) में है।
- नागाणा गाँव नागणेचियाँ देवी का प्रथम धाम रहा है ।
- राव बीका नागणेची माता की चाँदी की मूर्ति जोधपुर से लाए थे ।
- राव जोधा ने नागाणा गाँव से मूल मूर्ति मँगवाकर जोधपुर दुर्ग में स्थापित करवाकर वहाँ मंदिर बनवाया ।
- वर्तमान में नागाणा गाँव में धरती से प्रकट हुई शिला को देवी के रूप में पूजा जाता है, जो नागणेचियाँ देवी के मंदिर में स्थित है ।
- राठौड़ कुल के सरदार नीम के वृक्ष की पूजा करते हैं तथा उसकी लकडी का प्रयोग नहीं करते ।
ब्रह्माणी माता
- ब्रह्माणी माता कुम्हारों की कुलदेवी है।
- ब्रह्माणी माता का प्रसिद्ध मंदिर बाराँ जिले के अंता से 20 किमी. दूर सोरसेन (बारां) में है।
- ब्रह्माणी माता का यह एकमात्र ऐसा मंदिर है, जिसमें देवी की पीठ की पूजा की जाती हैं।
- संपूर्ण भारत में यह केवल एक ही मंदिर है, जिसमें माता के अग्र भाग का श्रृंगार नहीं किया जाता है।
- यात्री व श्रद्धालु भी माता के पीठ के दर्शन करते हैं, अग्रभाग के नहीं।
- यहां पर माघ शुक्ल सप्तमी को गधों का मेला लगता है।
दधिमती माता
- दधिमती माता का मंदिर नागौर जिले के जायल तहसील में गोट मांगलोद में स्थित है।
- यह मदिर प्रतिहार कालीन स्थापत्य कला का अनुपम उदाहरण है।
- इस मंदिर की शैली महामारू थी तथा उसी परम्परा के अनुरूप शिखर को नागर शैली में बनाया गया है।
- दधिमती माता दाधीच ब्राह्मणों की कुलदेवी है।
- इस क्षेत्र को पुराणों में कुशाक्षेत्र कहा गया है।
- प्रतिवर्ष चैत्र व अश्विन नवरात्रों में यहाँ मेला लगता है।
लटियाला माता/लुटियाला माता
- लटियाला माता कल्लों की कुलदेवी है।
- लटियाला माता का मंदिर फलोदी (जोधपुर) में है।
- इनका मंदिर फलौदी में है, जिसके आगे खेजड़ा (शमीवृक्ष) स्थित है, इसलिए इन्हें खेजड़ बेरी रायभवानी भी कहते है ।
- लटियाला माता के मंदिर के आगे खेजड़ी का वृक्ष स्थित है, इसलिए इन्हें खेजड़ी बेरी राय भवानी भी कहते हैं।
- लुटियाला माता का एक भव्य मंदिर बीकानेर के नवां शहर में स्थित है।
राजस्थान की अन्य लोक देवियाँ
- विरात्रा माता – भोपों की कुलदेवी विरात्रा माता का मंदिर बाड़मेर के चौहटन क्षेत्र में है।
- आशापुरा माता – बिस्सी जाति की कुलदेवी आशापुरा माता का मंदिर पोकरण (जैसलमेर) में है।
- तनोट माता – रुमाल वाली देवी, सेना के जवानों की ईष्ट देवी, भाटी शासकों की ईस्ट देवी, थार की वैष्णो देवी आदि के उपनाम से प्रसिद्ध तनोट माता के इस मंदिर में माता की पूजा बॉर्डर सिक्योरिटी फोर्स (बीएसएफ) के जवान करते हैं।
- सुगाली माता – 1857 की क्रांति की देवी सुगाली माता आऊवा (पाली) के ठाकुर कुशाल सिंह चंपावत की ईष्ट देवी है।
- आवरी माता/आसावरी माता – इनका मंदिर चित्तौड़गढ़ जिले के निकुंभ गांव में है।
- आमजा माता – इनका मंदिर रीछड़े गांव केलवाड़ा (उदयपुर) में है।
- बाण माता – इनका मंदिर कुंभलगढ़ किले के पास केलवाड़ा उदयपुर की गड्डी में स्थित है।
- अंबिका माता – अंबिका माता का प्रसिद्ध मंदिर जगत गांव (उदयपुर) में है, इसे मेवाड़ का खजुराहो भी कहा जाता है।
- कालका माता – कालका माता सुनारों की कुल देवी है, इनका मंदिर पल्लू गांव (हनुमानगढ़) में है।
- शारदा देवी – इनका मंदिर पिलानी (झुंझुनू) में है।
- भदाणा माता – भदाणा माता हाड़ा चौहानों की कुलदेवी है, यहां मूंठ की चपेट में आये लोगों का इलाज होता है।
- हिचकी माता – हिचकी माता का मंदिर सनवाड़ गाँव (सवाई माधोपुर) में स्थित है।
- तुलजा भवानी – तुलजा भवानी छत्रपति शिवजी की आराध्य देवी थी, इनका मंदिर चित्तौड़गढ़ दुर्ग में है।
- कालिका माता – कालिका माता गुहिल वंश की इष्ट देवी है, इनका मंदिर चित्तौड़गढ़ दुर्ग में प्रतिहार कालीन शैली में बना हुआ है।
- जलदेवी – इनका मंदिर बावड़ी गांव (टोडारायसिंह तहसील, टोंक) में हुआ था।
- आशापुरी माता/महोदरी माता – यह जालोर के सोनगरा चौहानो की कुलदेवी है, इनका मुख्य मंदिर मोदरा गांव (जालोर) में है।
- अर्बुदा देवी – इनका मंदिर माउन्ट आबू (सिरोही) में है, इन्हें राजस्थान की वैष्णो देवी कहते है।
- स्वांगिया माता/सुग्गा माता – स्वांगिया माता आवड़ माता का ही एक स्वरूप है, स्वांगिया माता जैसलमेर के भाटी राजवंश की कुल देवी है।
- आवड़ माता/हिंगलाज माता/आवक माता – इनका मंदिर लोद्रवा जैसलमेर में है। लोकमानस में सुगनचिड़ी को आवड़ माता का रूप माना जाता है।
- अर्बुदा देवी – इन्हें राजस्थान की वैष्णो देवी, देवी के अंधेरों की पूजा।
- बड़ली माता – इनका प्रसिद्ध मंदिर बेड़च नदी के किनारे आकोला (चित्तौड़गढ़) में है।
- राजेश्वरी माता – यह भरतपुर के जाट वंश की कुल देवी है।
- गंगामाता – इनका मंदिर भरतपुर में है, एक अन्य मंदिर झुंझुनू में है।
- चारभुजा देवी – इनका मंदिर खमनौर (राजसमंद) में है।
- घेवर माता – इनका मदिर राजसमंद झील की पाल पर राजसमंद में है।
- क्षेमकरी माता – इनका मंदिर वंसतगढ़ (सिरोही) में है। इन्हें खीमेल माता कहते है।
विभिन्न जातियों की कुल देवियाँ
- सीरवी जाति – आईमाता
- कल्ला जाति – लुटियाला माता
- यादव जाति – कैला देवी
- कंजर जाति – चौथ माता
- भील जाति – आमजा माता
- भोपा जाति – विरात्रा माता
- बिस्सा जाति – आशापुरा माता
- मीणा जाति – कैला देवी
- गुर्जर जाति – कैला देवी
- नाइ जाति – नारायणी माता
- पांचाल जाति – त्रिपुरा सुंदरी
- ओसवाल जाति – सचियाँ माता
- खंडेलवाल जाति – सकराय माता
विभिन्न रियासतों की कुल देवियाँ
- जोधपुर – नागणेची माता
- आमेर – जमवाय माता
- जालोर – आशापुरी माता
- भरतपुर – राजेश्वरी माता
- आऊवा – सुगाली माता
- जैसलमेर – स्वांगिया माता
- करौली – कैला देवी
- कोटा – भद्राणा माता
- बीकानेर – करणीमाता
- जयपुर – जमवाय माता
- जोबनेर – ज्वाला माता
- उदयपुर – बाणमाता
- सीकर – जीणमाता
- सांभर – शाकम्भरी माता
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