भारत का प्रागैतिहासिक काल नोट्स

Telegram GroupJoin Now

भारत का प्रागैतिहासिक काल नोट्स – इस पोस्ट में भारत के प्रागैतिहासिक काल के बारे में विस्तृत लेख लिखा गया है। यह पोस्ट सभी प्रकार के प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। इसमें प्रागैतिहासिक काल के महत्वपूर्ण नोट्स प्रश्नोत्तर क्वेश्चन, प्रागैतिहासिक काल की ट्रिक पीडीएफ नोट्स डाउनलोड हिंदी में आदि दिए गए है। पूरा जरूर पढ़ें:-

  • प्रागैतिहासिक काल (मानव इतिहास के प्रारम्भ से लगभग 3000 ई.पू. तक का काल)
  • आद्य ऐतिहासिक काल (3000 ई.पू. से 600 ई.पू. तक)
  • ऐतिहासिक काल (600 ई.पू. के पश्चात् का काल)

प्रागैतिहास काल :-

जिस काल में मनुष्य ने घटनाओं का कोई लिखित विवरण नहीं मिलता है, प्रागैतिहासिक काल कहलाता है। इस काल में विषय में जो भी जानकारी मिलती है, वह पाषाण के उपकरणों, मिट्टी के बर्तनों, खिलौने आदि से प्राप्त होती हैं। यह काल मनुष्य की सभ्यता का प्रारम्भिक काल माना जाता है। इस काल को तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है। –

  • पुरा पाषाण काल
  • मध्य पाषाण काल एवं
  • नव पाषाण काल अथवा उत्तर पाषाण काल 

पुरापाषाण काल :-

यूनानी भाषा में Palaios प्राचीन एवं Lithos पाषाण के अर्थ में प्रयुक्त होता था। इन्हीं शब्दों के आधार पर पाषाणकाल शब्द बना। यह काल आखेटक एवं खाद्य-संग्रहण काल के रूप में भी जाना जाता है। इस काल में प्राप्त उपकरणों के आधार पर यह अनुमान लगाया जा रहा है कि ये लगभग 2,50,000 ई.पू. के होंगे। अभी हाल में महाराष्ट्र के ‘बोरी’ नामक स्थान खुदाई में मिले अवशेषों से ऐसा अनुमान लगाया जा रहा है कि इस पृथ्वी पर ‘मनुष्य’ की उपस्थिति लगभग 14 लाख वर्ष पुरानी है। 
पुरापाषाण काल में प्रयुक्त होने वाले प्रस्तर उपकरणों के आकार एवं जलवायु में होने वाले परिवर्तन के आधार पर इस काल को हम तीन वर्गो में विभाजित कर सकते हैं।-

  • निम्न पुरा पाषाण काल
  • मध्य पुरापाषाण काल
  • उच्च पुरापाषाण काल

मध्य पाषाण काल :-

इस काल में प्रयुक्त होने वाले उपकरण आकार में बहुत छोटे होते थे, जिन्हें लघु पाषाणोपकरण माइक्रोलिथ कहते थे। पुरापाषाण काल में प्रयुक्त होने वाले कच्चे पदार्थ क्वार्टजाइट के स्थान पर मध्य पाषाण काल में जेस्पर, एगेट, चर्ट और चालसिडनी जैसे पदार्थ प्रयुक्त किये गये। जीवित व्यक्ति के अपरिवर्तित जैविक गुणसूत्रों के प्रमाणों के आधार पर भारत में मानव का सबसे पहला प्रमाण केरल से मिला है जो सत्तर हज़ार साल पुराना होने की संभावना है।

मध्य पाषाणकालीन जीवन भी शिकार पर अधिक निर्भर था। इस समय तक लोग पशुओं में गाय, बैल, भेड़, घोड़े एवं भैंसों का शिकार करने लगे थेयह काल वह है जब अफ़्रीक़ा से आदि मानव ने विश्व के अनेक हिस्सों में बसना प्रारम्भ किया जो पचास से सत्तर हज़ार साल पहले का माना जाता है। कृषि संबंधी प्रथम साक्ष्य ‘साम्भर’ राजस्थान में पौधे बोने का है जो ईसा से सात हज़ार वर्ष पुराना है।



मध्य पाषाण काल के अन्तिम चरण में कुछ साक्ष्यों के आधार पर प्रतीत होता है कि लोग कृषि एवं पशुपालन की ओर आकर्षित हो रहे थे। मानव अस्थिपंजर के साथ कहीं-कहीं पर कुत्ते के अस्थिपंजर भी मिले है जिनसे प्रतीत होता है कि ये लोग मनुष्य के प्राचीन काल से ही सहचर थे।
 मध्य पाषाण युगीन संस्कृति के महत्त्वपूर्ण स्थल हैं

  • बागोर राजस्थान
  • लंघनाज गुजरात
  • सराय नाहरराय, चोपनी माण्डो, महगड़ा व दमदमा उत्तर प्रदेश
  • भीमबेटका, आदमगढ़ मध्य प्रदेश

नव पाषाण काल :-

साधरणतया इस काल की सीमा 3500 ई.पू. से 1000 ई.पू. के बीच मानी जाती है। इस काल की सभ्यता भारत के विशाल क्षेत्र में फैली हुई थी। सर्वप्रथम 1860 ई. में ‘ली मेसुरियर’ ने इस काल का प्रथम प्रस्तर उपकरण उत्तर प्रदेश की टौंस नदी की घाटी से प्राप्त किया। इसके पश्चात 1872 ई. में ‘निबलियन फ़्रेज़र’ ने कर्नाटक के ‘बेलारी’ क्षेत्र को दक्षिण भारत के उत्तर-पाषाण कालीन सभ्यता का मुख्य स्थल घोषित किया।

इस सभ्यता के अन्य मुख्य केन्द्र बिन्दु हैं – कश्मीर, सिंध प्रदेश, बिहार, झारखंड, बंगाल, उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़, असम आदि।

आद्य ऐतिहासिक काल :-

जिस काल में लेखन कला के प्रचलन के बाद भी उपलब्ध लेख पढ़े नहीं जा सके हैं, आद्य ऐतिहासिक काल कहलाते है। सिंधु एवं वैदिक सभ्यता इस काल से संबंधित है। इसके अध्ययन हेतु पुरातात्विक एवं साहित्यिक दोनों प्रकार के साक्ष्य उपलब्ध हैं, परंतु पुरातात्विक साक्ष्यों का ही उपयोग हो पाता है। वैदिक साहित्य इसका अपवाद है। आद्य ऐतिहासिक काल को दो भागों में बांटा जाता है –

  • ताम्रपाषण काल
  • लौह काल

ताम्र-पाषाणिक काल :-

जिस काल में मनुष्य ने पत्थर और तांबे के औज़ारों का साथ-साथ प्रयोग किया, उस काल को ‘ताम्र-पाषाणिक काल’ कहते हैं। सर्वप्रथम जिस धातु को औज़ारों में प्रयुक्त किया गया वह थी – ‘तांबा’। भारत में ताम्र पाषाण अवस्था के मुख्य क्षेत्र दक्षिण-पूर्वी राजस्थान, मध्य प्रदेश के पश्चिमी भाग, पश्चिमी महाराष्ट्र तथा दक्षिण-पूर्वी भारत में हैं। 

‘बनासघाटी’ में स्थित ‘अहाड़’ में सपाट कुल्हाड़ियां, चूड़ियां और कई तरह की चादरें प्राप्त हुई हैं। ये सब तांबे से निर्मित उपकरण थे। ‘गिलुन्डु’, जहां पर एक प्रस्तर फलक उद्योग के अवशेष मिले हैं, ‘अहाड़ संस्कृति’ का केन्द्र बिन्दु माना जाता है।

इस काल में लोग गेहूँ, धान और दाल की खेती करते थे। पशुओं में ये गाय, भैंस, भेड़, बकरी, सूअर और ऊँट पालते थे। ‘जोर्वे संस्कृति’ के अन्तर्गत एक पांच कमरों वाले मकान का अवशेष मिला है। जीवन सामान्यतः ग्रामीण था। कुछ बर्तन, जैसे ‘साधारण तश्तरियां’ एवं ‘साधारण कटोरे’ महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश में ‘सूत एवं रेशम के धागे’ तथा ‘कायथा’ में मिले ‘मनके के हार’ के आधार पर कहा जा एकता है कि ‘ताम्र-पाषाण काल’ में लोग कताई-बुनाई एवं सोनारी व्यवसाय से परिचित थे। 

इस काल के लोग लेखन कला से अनभिज्ञ थे।राजस्थान और मालवा में प्राप्त मिट्टी निर्मित वृषभ की मूर्ति एवं ‘इनाम गांव से प्राप्त ‘मातृदेवी की मूर्ति’ से लगता है कि लोग वृषभ एवं मातृदेवी की पूजा करते थे

लौह काल :-

उत्तर भारत में लौह काल के साथ-साथ चित्रित धूसर मृदभांड संस्कृति कायम हुई है। दक्षिण भारत में लौह काल महापाषाण संस्कृति के समकालीन था।

ऐतिहासिक काल :-

मानव विकास के उस काल को इतिहास कहा जाता है, जिसके लिए लिखित विवरण उपलब्ध है। मनुष्य की कहानी आज से लगभग दस लाख वर्ष पूर्व प्रारम्भ होती है, पर ‘ज्ञानी मानव‘ होमो सैपियंस Homo sapiens का प्रवेश इस धरती पर आज से क़रीब तीस या चालीस हज़ार वर्ष पहले ही हुआ। इस काल के अध्ययन हेतु पुरातात्विक, साहित्यिक तथा विदेशियों के वर्णन, तीनों प्रकार के साक्ष्य उपलब्ध हैं।

यह भी पढ़ें:-

इस पोस्ट में प्रागैतिहासिक काल का समय, प्रश्न नोट्स PDF, प्रागैतिहासिक काल के जनक संस्कृति इत्यादि पर विस्तृत लेख लिखा है। उम्मीद है कि आप सभी को यह पोस्ट पसंद आया होगा।

Tags : Pragaitihasik kal pdf notes, pragaitihasik kal gk notes download, pragaitihasik kal book questions in hindi, pragaitihasik kal online quiz notes.

Telegram GroupJoin Now

Leave a Comment