सिंधु घाटी सभ्यता का इतिहास

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सिंधु घाटी सभ्यता का इतिहास – आज की इस पोस्ट में सिंधु घाटी सभ्यता का परिचय, इतिहास, हड़प्पाकालीन स्थलों के खोजकर्ता एवं नदियों के किनारे स्थित हड़प्पाकालीन शहर इत्यादि पर विस्तृत पोस्ट लिखा गया है।

सिंधु घाटी सभ्यता

  • भारत का इतिहास सिंधु घाटी सभ्यता से प्रारंभ होता है जिसे हम हड़प्पा सभ्यता के नाम से भी जानते हैं।
  • सिंधु घाटी सभ्यता मिस्र, मेसोपोटामिया,भारत और चीन की चार सबसे बड़ी प्राचीन नगरीय सभ्यताओं से भी अधिक उन्नत थी।
  • 1920 में, भारतीय पुरातत्त्व विभाग द्वारा किये गए सिंधु घाटी के उत्खनन से प्राप्त अवशेषों से हड़प्पा तथा मोहनजोदडो जैसे दो प्राचीन नगरों की खोज हुई।
  • भारतीय पुरातत्त्व विभाग के तत्कालीन डायरेक्टर जनरल जॉन मार्शल ने सन 1924 में सिंधु घाटी में एक नई सभ्यता की खोज की घोषणा की।

सिंधु घाटी सभ्यता के प्रमुख स्थलों के खोजकर्ता 

  • हड़प्पा सभ्यता की खोज माधो स्वरूप वत्स, दयाराम साहनी ने 1921 में की।
  • मोहनजोदाड़ो सभ्यता की खोज राखाल दास बनर्जी ने 1922 में की।
  • रोपड़ सभ्यता की खोज यज्ञदत्त शर्मा ने 1953 में की।
  • कालीबंगा सभ्यता की खोज ब्रजवासी लाल, अमलानन्द घोष ने 1953 में की।
  • लोथल सभ्यता की खोज ए. रंगनाथ राव ने 1954 में की।
  • चन्हूदड़ों सभ्यता की खोज एन.गोपाल मजूमदार ने 1931 में की।
  • सूरकोटदा सभ्यता की खोज जगपति जोशी ने 1964 में की।
  • बणावली सभ्यता की खोज रवीन्द्र सिंह विष्ट ने 1973 में की।
  • आलमगीरपुर सभ्यता की खोज यज्ञदत्त शर्मा ने 1958 में की।
  • रंगपुर सभ्यता की खोज माधोस्वरूप वत्स, रंगनाथ राव ने 1931.-1953 में की।
  • कोटदीजी सभ्यता की खोज फज़ल अहमद ने 1953 में की।
  • सुत्कागेनडोर सभ्यता की खोज ऑरेल स्टाइन, जार्ज एफ. डेल्स ने 1929 में की।

नदियों के किनारे स्थित हड़प्पाकालीन शहर

  • मोहनजोदाड़ो – सिंधु नदी
  • हड़प्पा – रावी नदी
  • आलमगीरपुर – हिन्डन नदी
  • रंगपुर – मदर नदी
  • सुत्कागेनडोर – दाश्त नदी
  • वालाकोट – अरब सागर
  • कोटदीजी – सिंधु नदी
  • रोपड़ – सतलुज नदी
  • कालीबंगा – घग्घर नदी
  • लोथल – भोगवा नदी
  • सोत्काकोह – अरब सागर

हड़प्पा सभ्यताओं की महत्वपूर्ण खोज

  • हड़प्पा – मनुष्य के शरीर की बलुआ पत्थर की बनी मूर्तियाँ, अन्नागार, बैलगाड़ी
  • मोहनजोदड़ो (मृतकों का टीला) – विशाल स्नानागर, अन्नागार, कांस्य की नर्तकी की मूर्ति, पशुपति महादेव की मुहर, दाड़ी वाले मनुष्य की पत्थर की मूर्ति, बुने हुए कपडे
  • चन्हूदड़ों – मनके बनाने की दुकानें, बिल्ली का पीछा करते हुए कुत्ते के पदचिन्ह
  • सुत्कागेनडोर – हड़प्पा और बेबीलोन के बीच व्यापार का केंद्र बिंदु था।
  • आमरी – हिरन के साक्ष्य
  • कालीबंगा – अग्नि वेदिकाएँ, ऊंट की हड्डियाँ, लकड़ी का हल
  • लोथल – मानव निर्मित बंदरगाह, गोदीवाडा, चावल की भूसी, अग्नि वेदिकाएं, शतरंज का खेल
  • सुरकोतदा – घोड़े की हड्डियाँ, मनके
  • धौलावीरा – जल निकासी प्रबंधन, जल कुंड
  • बनावली – मनके, जौ, हड़प्पा पूर्व और हड़प्पा संस्कृतियों के साक्ष्य

सिंधु घाटी सभ्यता के चरण

सिंधु घाटी सभ्यता के तीन चरण हैं-

  1. प्रारंभिक हड़प्पाई सभ्यता (3300ई.पू.-2600ई.पू. तक) 
  2. परिपक्व हड़प्पाई सभ्यता (2600ई.पू-1900ई.पू. तक) 
  3. उत्तर हड़प्पाई सभ्यता (1900ई.पु.-1300ई.पू. तक)

सिंधु सभ्यता के तथ्य

  • हड़प्पाई लिपि का प्रथम उदाहरण लगभग 3000 ई.पू के समय का मिलता है।
  • प्रारंभिक हड़प्पाई चरण ‘हाकरा चरण’ से संबंधित है, जिसे घग्गर- हाकरा नदी घाटी में चिह्नित किया गया है। इस चरण की विशेषताएं एक केंद्रीय इकाई का होना तथा बढते हुए नगरीय गुण थे।
  • व्यापार क्षेत्र विकसित हो चुका था और खेती के साक्ष्य भी मिले हैं। उस समय मटर, तिल, खजूर , रुई आदि की खेती होती थी।
  • 2600 ई.पू. तक सिंधु घाटी सभ्यता अपनी परिपक्व अवस्था में प्रवेश कर चुकी थी।
  • कोटदीजी नामक स्थान परिपक्व हड़प्पाई सभ्यता के चरण को प्रदर्शित करता है।
  • सिंधु घाटी सभ्यता के क्रमिक पतन का आरंभ 1800 ई.पू. से माना जाता है,1700 ई.पू. तक आते-आते हड़प्पा सभ्यता के कई शहर समाप्त हो चुके थे । कुछ पुरातात्त्विक आँकड़ों के अनुसार उत्तर हड़प्पा काल का अंतिम समय 1000 ई.पू. – 900 ई. पू. तक बताया गया है।

नगरीय योजना और विन्यास

  • हड़प्पाई सभ्यता अपनी नगरीय योजना प्रणाली के लिये जानी जाती है।
  • अन्न भंडारों का निर्माण हड़प्पा सभ्यता के नगरों की प्रमुख विशेषता थी।
  • हड़प्पा सभ्यता में जल निकासी प्रणाली बहुत प्रभावी थी।
  • मोहनजोदड़ो और हड़प्पा के नगरों में अपने- अपने दुर्ग थे जो नगर से कुछ ऊँचाई पर स्थित होते थे जिसमें अनुमानतः उच्च वर्ग के लोग निवास करते थे ।
  • हड़प्पा सभ्यता की एक ध्यान देने योग्य बात यह भी है कि इस सभ्यता में ग्रिड प्रणाली मौजूद थी जिसके अंतर्गत सडकें एक दूसरे को समकोण पर काटती थीं ।
  • दुर्ग से नीचे सामान्यतः ईंटों से निर्मित नगर होते थे,जिनमें सामान्य लोग निवास करते थे।
  • जली हुई ईंटों का प्रयोग हड़प्पा सभ्यता की एक प्रमुख विशेषता थी।
  • हर छोटे और बड़े घर के अंदर स्वंय का स्नानघर और आँगन होता था।

अर्थव्यवस्था

  • अनगिनत संख्या में मिली मुहरें, वजन और मापन की विधियों से सिंधु घाटी सभ्यता के लोगों के व्यापार के महत्त्व को बताती है। हड़प्पाई लोग मुख्य रूप से पत्थर ,धातुओं, सीप या शंख का व्यापर करते थे।
  • धातु मुद्रा का प्रचलन नहीं था। हड़प्पाई लोग में व्यापार की वस्तु विनिमय प्रणाली मौजूद थी।
  • दजला -फरात नदियों की भूमि वाले क्षेत्र से हड़प्पा वासियों के वाणिज्यिक संबंध थे।
  • हड़प्पाई प्राचीन ‘लैपिस लाजुली’ मार्ग से व्यापार करते थे।

कृषि

हड़प्पाई गाँव मुख्यतः प्लावन मैदानों के पास स्थित थे,जो पर्याप्त मात्रा में अनाज का उत्पादन करते थे। गेहूँ, जौ, सरसों, तिल, मसूर आदि का उत्पादन होता था। गुजरात के कुछ स्थानों से बाजरा उत्पादन के अवशेष भी मिले हैं,जबकि यहाँ चावल के प्रयोग के संकेत तुलनात्मक रूप से बहुत ही दुर्लभ मिलते हैं। सिंधु सभ्यता के मनुष्यों ने सर्वप्रथम कपास की खेती प्रारंभ की थी। हड़प्पाई लोग कृषि के साथ -साथ बड़े पैमाने पर पशुपालन भी करते थे। घोड़े के साक्ष्य सूक्ष्म रूप में मोहनजोदड़ो और लोथल की एक संशययुक्त टेराकोटा की मूर्ति से मिले हैं।

शिल्पकला

  • बुनाई उद्योग में प्रयोग किये जाने वाले ठप्पे बहुत सी वस्तुओं पर पाए गए हैं।
  • हड़प्पाई कांस्य की वस्तुएँ निर्मित करने की विधि ,उसके उपयोग से भली भाँति परिचित थे।
  • तांबा राजस्थान की खेतड़ी खान से प्राप्त किया जाता था।
  • टेराकोटा की मूर्तियों का निर्माण हड़प्पा सभ्यता की महत्त्वपूर्ण शिल्प विशेषता थी।

संस्थाएँ

  • सिंधु घाटी सभ्यता से बहुत कम मात्रा में लिखित साक्ष्य मिले हैं, जिन्हें अभी तक पुरातत्त्वविदों तथा शोधार्थियों द्वारा पढ़ा नहीं जा सका है।
  • हड़प्पाई स्थलों पर किसी मंदिर के प्रमाण नहीं मिले हैं।

धर्म

  • पुरुष देवता के रूप में मुहरों पर तीन शृंगी चित्र पाए गए हैं जो कि योगी की मुद्रा में बैठे हुए हैं ।
  • देवता के एक तरफ हाथी, एक तरफ बाघ, एक तरफ गैंडा तथा उनके सिंहासन के पीछे भैंसा का चित्र बनाया गया है। 
  • सिंधु घाटी सभ्यता के लोग वृक्षों तथा पशुओं की पूजा किया करते थे।

सिंधु घाटी सभ्यता के पतन का कारण

  • सिंधु घाटी सभ्यता का लगभग 1800 ई.पू. में पतन हो गया था, परंतु उसके पतन के कारण अभी भी विवादित हैं।
  • सिंधु घटी सभ्यता के बाद की संस्कृतियों में ऐसे कई तत्त्व पाए गए जिनसे यह सिद्ध होता है कि यह सभ्यता आक्रमण के कारण एकदम विलुप्त नहीं हुई थी ।
  • दूसरी तरफ से बहुत से पुरातत्त्वविद सिंधु घाटी सभ्यता के पतन का कारण प्रकृति जन्य मानते हैं। इनमे प्राकृतिक कारण भूगर्भीय और जलवायु संबंधी हो सकते हैं।
  • इन प्राकृतिक आपदाओं को सिंधु घाटी सभ्यता के पतन का मंद गति से हुआ, परंतु निश्चित कारण माना गया है।

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