महाराणा प्रताप का जीवन परिचय :- आज हम बात करने जा रहे हैं महाराणा प्रताप की जिन्होंने मुगलों के आतंक से मेवाड़ की धरती को बचाने के लिए अपनी जान दांव पर लगा दी थी। मेवाड़ के राजा उदय सिंह के घर में जन्में उनके ज्येष्ठ पुत्र महाराणा प्रताप को बचपन से ही उच्च स्तर की संस्कृति दी गई। वीरता उसके खून में थी। प्रताप बालक जितना वीर था, वह भी पितृ भक्त था।पिता राणा उदयसिंह अपने कनिष्ठ पुत्र जगमल को बहुत प्यार करते थे। इसी कारण वे उसे राज्य का उत्ताराधिकारी घोषित करना चाहते थे. महाराणा प्रताप ने पिता के इस निर्णय का तनिक भी विरोध नहीं किया। राजस्थान में प्रचलित इस कहावत में हर जननी से महाराणा प्रताप जैसे पुत्रों को जन्म देने का आह्वान किया गया हैं, इसके पीछे राणा की वीरता और साहसी जीवन ही प्रेरणा का मुख्य स्त्रोत हैं.
महाराणा प्रताप का जीवन परिचय:-
- नाम – महाराणा प्रताप
- जन्म – 9 मई, 1540
- पुण्य तिथि – 29 जनवरी, 1597 ई.
- पिता – उदयसिंह
- माता – महाराणी जयवंताबाई
- दादा – राणा सांगा
- दादी – रानी कर्णावती
- भाई – शक्ति सिंह
- बहिनें – चाँद कंवर, माँ कंवर
- पुत्री – चम्पा
- जन्म स्थान – राजस्थान के कुंभलगढ़
- वंश – सुर्यवंश
- राज्य – मेवाड़
- युद्ध – हल्दीघाटी का युद्ध
- राजवंश – सिसोदिया
- राजघराना – राजपूताना
- कुल देवता – एकलिंग महादेव
- घोड़ा – चेतक
- धार्मिक मान्यता – हिंदू धर्म
- उत्तराधिकारी – राणा अमर सिंह
- पूर्वाधिकारी – महाराणा उदयसिंह
- शासन अवधि – 29 वर्ष
- शासन काल – 1568–1597ई.
- राजधानी – उदयपुर
महाराणा प्रताप का परिवार:-
कहा जाता है कि महाराणा प्रताप ने कुल 11 शादियां की थीं, जिसमें प्रताप की 17 बेटियां और 5 बेटे थे. महाराणा प्रताप के पिता की पहली पत्नी जयवंता बाई थीं। महाराणा प्रताप की माता कौन थी, इसलिए उस समय के नियमों के अनुसार प्रताप का राज्याभिषेक गोगुन्दा में किया गया था।
महाराणा प्रताप के राज्याभिषेक –
महाराणा प्रताप के समय काल दरमियान दिल्ली पर मुगल बादशाह अकबर का शासन था। मेवाड़ के राजा उदयसिह ने मेवाड़ और दिल्ली ऐसी बहुत सारी जगह पर अपनी हुकूमत चलाई थी। अपनी मृत्यू से पहले उदय सिंगने उनकी सबसे छोटी पत्नीका बेटा जगम्मलको राजा घोषित किया था। जबकि प्रताप सिंह जगम्मलसे बडे थे। लेकिन महाराणा प्रताप ने अपने पिता की आज्ञा का पालन किया था। और आखिरकार में महाराणा प्रताप को मेवाड़ का और दिल्ली का राज्यअभिषेक उनके नाम पर हुआ था।
महाराणा प्रताप की मृत्यु:-
महाराणा प्रताप की मृत्यु अपनी राजधानी चावंड में हुई थी। धनुष की डोर खींचने से उनकी आंत में लगने के कारण इलाज करवाया लेकिन तबियत में ज्यादा सुधार नहीं आया। इस वाज से महाराणा प्रताप की मोत 57 वर्ष की उम्र में 29 जनवरी, 1597 को हो गई थी। महाराणा प्रताप की मृत्यु का समाचार सुनकर अकबर के पेरो से जमींन खिसक गई। तो वह रोने लगा। प्रताप के बाद पुत्र अमर सिंह ने अपनी गद्दी संभाली, प्रताप ने अपनी मृत्यु के समय अपने पुत्र से कहा था कि मुगलों के आगे कभी घुटने मत टेको और चित्तौड़ को वापस पाने के लिए, लेकिन 1614 में उनके बेटे ने अकबर के बेटे जहांगीर के सामने आत्मसमर्पण कर दिया था.
महाराणा प्रताप का आरंभिक जीवन:-
राणा प्रताप का जन्म कुम्भलगढ़ किले में हुआ था। महाराणा प्रताप की माता का नाम जवंताबाई था, जो पाली के सोनागरा अखैराज की पुत्री थीं। महाराणा प्रताप बचपन में कीका के नाम से जाने जाते थे। महाराणा प्रताप सिंह का राज्याभिषेक गोगुन्दा में हुआ, इस दौरान मेवाड़ के 54वें शासक के साथ राजकुमार प्रताप को महाराणा की उपाधि मिली। मेवाड़ की शान एक वीर योद्धा जिन्होंने कभी हार नहीं मानी अकबर के लाख प्रयत्न के बाद भी मुगलों की अधीनता स्वीकार नहीं करने वाले वीर योद्धा का जन्म 9 मई 1540 को राजस्थान में मेवाड़ के राजसमंद जिले के कुंभलगढ़ दुर्ग के बादल महल में इनका जन्म हुआ था। प्रताप ने कम उम्र में ही वीरता और शौर्य का परिचय दिया बचपन से ही अस्त्र-शस्त्र चलाने में पूरी तरह से निपुण थे
महाराणा प्रताप की पत्निया:-
- महारानी अजबदे पंवार
- सोलनखिनीपुर बाई
- अमरबाई राठौर
- शहमति बाई हाडा
- अलमदेबाई चौहान
- रत्नावती बाई परमार
- फूलबाई राठौर
- जसोबाई चौहान
हल्दीघाटी का युद्ध:-
- हल्दीघाटी का युद्ध महाराणा प्रताप की जीवनी में ऐसा ही एक युद्ध है। जिसने पूरी मुगल सेना को तितर-बितर कर दिया और मुगलों की इतनी बड़ी सेना होने के बाद भी उन्हें युद्ध की अलग-अलग रणनीति बनाने पर मजबूर कर दिया।
- यह युद्ध 18 जून 1576 को मेवाड़ के राजा महाराणा प्रताप और दिल्ली के शासक मुगल सम्राट अकबर के बीच लड़ा गया था। यहां प्रताप को भील जनजाति का समर्थन प्राप्त था। जहां महाराणा प्रताप के सेनापति हकीम खां सूर थे और मुगल सेना का नेतृत्व आमेर के राजा मानसिंह प्रथम कर रहे थे ।
- प्रताप की सेना जो पहले से ही पहाड़ों में युद्ध करने में सक्षम थी और दूसरी तरफ अकबर की सेना जो पहले समतल मैदानों में युद्ध किया करते थे ,जो पूर्ण रूप से पहाड़ी क्षेत्रों में युद्ध करने में सक्षम नहीं थे। मुगलों की सेना ने मान सिंह प्रथम के नेतृत्व में कई महीनों पहले पहाड़ी क्षेत्रों में युद्ध का अभ्यास किया था
- महाराणा प्रताप ने पूरी तरह से हमला किया जिसमें मुगलों के बहुत से सैनिक मारे गए और प्रारंभ में ही युद्ध में प्रताप ने बलोल खा के दो टुकड़े कर दिए थें।
- प्रताप की सेना ने मुगलों का बुरी तरह पीछा किया और मुगल सेना मैदान छोड़कर भागने लगी, भागती हुई मुगल सेना में मिहतर खान ने जोश डाला था। जिससे मुगल सेना टूट गई और प्रताप के हाथी राम प्रसाद को बंदी बना लिया और मुगल सेना तुल्गामा पद्धति से मेवाड़ सेना को तीन तरफ से घेरने में सफल हो गई और अब युद्ध का पैमाना मुगलों की ओर बढ़ता हुआ नजर आया।
महाराणा प्रताप का घोड़ा चेतक:-
राणा प्रताप की वीरता के साथ-साथ उनके घोड़े चेतक की वीरता भी विश्व प्रसिद्ध है। महाराणा प्रताप का प्रिय घोड़ा चेतक था। जो कि 11 फीट लम्बा था. चेतक पर नीले रंग का निशान था इसलिए राणा प्रताप को “नीले घोड़े रा असवार: कहा जाता हैं, जिसका मतलब “नीले घोड़ी की सवारी करने वाला” होता हैं.कहा जाता है कि युद्ध के दौरान जब मुगल सेना उनके पीछे थी तो महाराणा प्रताप को पीठ पर बिठाकर चेतक ने कई फीट लंबे नाले को पार किया था। घाटी में चेतक का मकबरा बना हुआ है। प्रताप चेतक को नहीं भूल सके थे, और बाद में उन्होंने उस जगह पर एक उद्यान बनवाया, जहां पर चेतक ने अंतिम सांस ली थी.
महाराणा प्रताप और अकबर:-
- महाराणा प्रताप के समय अकबर दिल्ली का शासक था, उसकी रणनीति हिंदू राजाओं की शक्ति को अपने अधीन कर उन पर शासन करने की थी। इसी क्रम में युद्ध की अनदेखी करते हुए कई राजपूतों ने अपनी बेटियों को युद्ध की बजाय अकबर के हरम में भेज दिया ताकि एक संधि हो सके, लेकिन मेवाड़ ऐसा राज्य नहीं था, अकबर को यहां बहुत संघर्ष करना पड़ा था।.
- अकबर ने राणा प्रताप से ये तक कहा था कि वो यदि अकबर से संधि कर ले तो अकबर प्रताप को आधा हिंदुस्तान दे देगा लेकिन महाराणा प्रताप ने किसी की भी अधीनता स्वीकार करने से मना कर दिया
- उदयसिंह के समय राजपूतों ने जब चित्तोड़ छोड़ दिया था तो मुगलों ने शहर पर कब्जा कर लिया हालांकि वो पूरे मेवाड़ को हासिल करने में नाकाम रहे और अकबर पूरे हिन्दुस्तान पर शासन करना चाहता था इसलिए पूरा मेवाड़ उसका लक्ष्य था.
- 1573 में ही अकबर ने 6 बार द्विअर्थी प्रस्ताव भेजे लेकिन प्रताप ने सबको अस्वीकार कर दिया, अकबर के पांच बार संधि वार्ता भेजने के बाद प्रताप ने अपने बेटे अमर सिंह को अकबर के दरबार में संधि अस्वीकार करने के लिए भेजा
- महाराणा प्रताप ने मुगलों की बात ना मानते हुए खुद को राजसी वैभव से दूर रखा और अपने राज्य की स्वतंत्रता के लिए निरंतर लड़ाई करते रहे। 1576 में हल्दीघाटी में महाराणा प्रताप और अकबर के बीच ऐसा युद्ध हुआ जो पूरे विश्व के लिए आज भी एक मिसाल है। अभूतपूर्व वीरता और मेवाड़ी साहस के चलते मुगल सेना के दांत खट्टे कर दिए और सैकड़ों अकबर के सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया गया।
- जुलाई 1576 में प्रताप ने गोगुंदा को मुगलों से वापिस कब्जे में ले लिया और कुम्भलगढ़ को अपनी अस्थायी राजधानी बनाया, लेकिन अकबर ने खुद प्रताप पर चढाई कर दी और गोगुन्दा, उदयपुर एवं कुम्भलगढ़ पर कब्जा कर लिया जिससे महाराणा वापिस पहाड़ों में लौटने को मजबूर हो गये.
- महाराणा ने अपने राज्य को पुनः प्राप्त करने के लिए संघर्ष जारी रखा और अगले कुछ वर्षों में कुम्भलगढ़ और चित्तौड़ में अपनी खोई हुई संपत्ति वापस ले ली और साथ ही गोगुन्दा, रणथंभौर और उदयपुर को भी छीन लिया।
महाराणा प्रताप का वनों-कंदराओं में संघर्ष:-
प्रताप की सबसे बड़ी समस्या यह थी कि उसके पास पर्याप्त धन या सैनिक नहीं थे, इसलिए धन के अभाव में सैनिकों की व्यवस्था करना एक चुनौती थी। अकबर के पास एक विशाल सेना थी लेकिन प्रताप किसी भी हाल में पीछे नहीं हटने के लिए दृढ़ थे, इसलिए उन्हें हर चुनौती का सामना करना पड़ा, उनका उद्देश्य अपनी मातृभूमि को स्वतंत्र करना था। उन्होंने अपने साथ सभी मंत्री की बैठक बुलाई और उनके सामने ये शपथ ली कि वो जब तक मेवाड़ को स्वतंत्र नही करवा लेते तब तक सोने और चांदी की थाली में खाना नहीं खायेंगे। संघर्ष के दिनों में महाराणा प्रताप जब जंगल, पहाड़ों और घाटियों में भटक रहे थे तब उन पर सदा दुश्मनों के आक्रमण का खतरा बना रहता था, ना खाने को पर्याप्त भोजन मिलता था ना सोने की कोई सुविधा थी। मुलायम गद्दों पर नहीं सोयेंगे और महलों में नहीं रहेंगे। वे घास के पत्तों पर खाना खाएंगे, जमीन पर सोएंगे और झोपड़ी में अपना जीवन बिताएंगे, और जब तक चित्तौड़ मुक्त नहीं हो जाते, तब तक दाढ़ी भी नहीं बनाएंगे। उन्होंने अपने वीर साथियों से सहयोग की अपील की और इसका उन सभी पर बहुत प्रभाव पड़ा, सभी ने एक स्वर में प्रताप के रक्त की अंतिम बूंद तक सहयोग का आश्वासन दिया।
महाराणा प्रताप से जुडे अन्य रोचक तथ्य:-
- महाराणा प्रताप एक ही झटके में घोड़े समेत दुश्मन सैनिक को काट डालते थे।
- महाराणा प्रताप की पुण्यतिथि 19 जनवरी है।
- आज भी महाराणा प्रताप की तलवार कवच आदि सामान उदयपुर राज घराने के संग्रहालय में सुरक्षित हैं।
- श्यामनारायण पांडेय ने कविता ‘हल्दी घाटी का युद्ध’ में महाराणा प्रताप का वर्णन अच्छे शब्दों के साथ किया है।
- महाराणा प्रताप की मृत्यु धनुष की डोर खींचते वक्त आँत में चोट लगने के कारण मृत्यु हो गई।
- महाराणा प्रताप के भाले का वजन 80 किलोग्राम था और कवच का वजन भी 80 किलोग्राम ही था|कवच, भाला, ढाल, और हाथ में तलवार का वजन मिलाएं तो कुल वजन 207 किलो था।
- हल्दी घाटी की लड़ाई में मेवाड़ से 20000 सैनिक थे और अकबर की ओर से 85000 सैनिक युद्ध में सम्मिलित हुए।
- जब महाराणा प्रताप के दुश्मनों ने मेवाड़ को चारों तरफ से घेर लिया, तभी महाराणा प्रताप के दो भाई शक्ति सिंह और जगमल अकबर के खेमे में शामिल हो गए, लेकिन प्रताप ने जीवन भर के लिए अकबर के सामने आत्मसमर्पण नहीं किया।
- राणा का घोड़ा चेतक भी बहुत ताकतवर था उसकेमुँह के आगे दुश्मन के हाथियों को भ्रमित करने के लिए हाथी की सूंड लगाई जाती थी । यह हेतक और चेतक नाम के दो घोड़े थे।अकबर महाराणा प्रताप की मृत्यु को सुनकर बहुत दुखी हुआ था।
- राणा प्रताप बचपन में कीका के नाम से जाने जाते थे। चित्तौड़ की हल्दी घाटी में महाराणा प्रताप के प्रिय घोड़े चेतक का मकबरा आज भी मौजूद है। तब तक मेहनत करो जब तक मंजिल न मिल जाए।
- महाराणा प्रताप के सबसे प्यारे और वफादार घोड़े ने भी दुश्मनों के सामने अद्भुत वीरता दिखाई थी, हालांकि हल्दीघाटी के इस युद्ध में घायल होने के कारण चेतक की मृत्यु हो गई थी।
- महाराणा प्रताप के भाले का बजन 82 किलो था और युद्ध के वक्त महाराणा प्रताप 72 किलो का कवच पहनते थे। महाराणा प्रताप ने भगवान एकलिंगजी की कसम खाकर प्रतिज्ञा ली थी कि जिंदगीभर उनके मुख से अकबर के लिए सिर्फ तुर्क ही निकलेगा और वे कभी अकबर को अपना बादशाह नहीं मानेंगे।
- महाराणा प्रताप के घोड़े चेतक का मंदिर भी बना हुआ है, जो आज भी हल्दी घाटी में सुरक्षित है।
- राणा प्रताप, मेवाड़ के 13 वें राजपूत राजा थे। उनका जन्म मेवाड़ के शाही राजपूत परिवार में हुआ था।
- महाराणा प्रताप के घोड़े चेतक महाराणा ने 26 फीट की नदी पार कर वीर गति प्राप्त की। उसका एक पैर टूटने के बाद भी वह नदी पार कर गया। जहां वह घायल हुआ था, वहां आज खोड़ी इमली नाम का एक पेड़ है, जहां चेतक की मृत्यु हुई, वहां एक चेतक मंदिर है।
FAQ
प्रश्न. महाराणा प्रताप का जन्म कब हुआ?
उत्तर:- 9 मई, 1540
प्रश्न. महाराणा प्रताप के पिता का क्या नाम हैं?
उत्तर:- उदयसिंह
प्रश्न. महाराणा प्रताप के माता का क्या नाम हैं?
उत्तर:- जयवंताबाई
प्रश्न. महाराणा प्रताप के दादा का क्या नाम हैं?
उत्तर:- राणा सांगा
प्रश्न. महाराणा प्रताप के दादी का क्या नाम हैं?
उत्तर:- रानी कर्णावती
प्रश्न. महाराणा प्रताप की बहन का क्या नाम हैं?
उत्तर:- चाँद कंवर, माँ कंवर
प्रश्न. महाराणा प्रताप की पुत्री का क्या नाम हैं?
उत्तर:- चम्पा
प्रश्न. महाराणा प्रताप के कुल देवता हैं?
उत्तर:- एकलिंग महादेव
प्रश्न. महाराणा प्रताप की भाई का क्या नाम हैं?
उत्तर:- शक्ति सिंह
प्रश्न. महाराणा प्रताप की घोड़ी का क्या नाम हैं?
उत्तर:- चेतक
प्रश्न. महाराणा प्रताप की राजधानी हैं?
उत्तर:- उदयपुर
प्रश्न. महाराणा प्रताप का शासन काल हैं?
उत्तर:- 1568–1597ई.
प्रश्न. महाराणा प्रताप का राज्य हैं?
उत्तर:- मेवाड़
प्रश्न. महाराणा प्रताप का राजघराना कौनसा हैं?
उत्तर:- राजपूताना
प्रश्न. महाराणा प्रताप की शासन अवधि हैं?
उत्तर:- 29 वर्ष
प्रश्न. महाराणा प्रताप के उत्तराधिकारी कौन हैं?
उत्तर:- राणा अमर सिंह
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