राव चंद्रसेन का जीवन परिचय :- आज की पोस्ट में हम मारवाड़ नरेश राव चंद्रसेन राठौड़ की जीवनी जानने जा रहे हैं, जो भारत और मारवाड़ के एक साहसी और पराक्रमी राजा थे। कहा जाता है कि महाराणा प्रताप ने उनका पीछा किया और उन्हीं की तरह मुगलों का सामना किया। राव चंद्रसेन राठौड़ मुगलों के सामने कभी नहीं झुके और उन्होंने अपने साहस और पराक्रम से उनका सामना किया। राव चन्द्रसेन का जन्म मारवाड़ के राजा मालदेव जी के घर 30 जुलाई, 1541 ई. को हुवा था, वह मालदेव जी के छटे पुत्र थे। ये महाराणा प्रताप के समकालीन थे। इनकी योग्यता को देखकर मालदेव ने छोटा होने के बावजूद इन्हें ही अपना उतराधिकारी नियुक्त किया।राव चन्द्रसेन 1619 को जोधपुर की राजगद्दी पर बैठे। राव चन्द्रसेन अपने भाइयों में छोटे थे, लेकिन फिर भी उनके संघर्षशील व्यक्तित्व के चलते राव मालदेव ने अपने जीते जी उन्हें ही अपना उत्तराधिकारी चुन लिया था। तो आइए जानते हैं इस पोस्ट में राव चंद्रसेन के जीवन परिचय के बारे में।
राव चंद्रसेन का जीवन परिचय:-
- नाम – राव चंद्रसेन
- उपनाम – मारवाड़ का राणा प्रताप, प्रताप का अग्रगामी, भूला-बिसरा राजा
- जन्म – 16 जुलाई 1541
- पिता – राव मालदेव
- माता – स्वरूप दे
- दादा – राव गांगाभाई – उदय सिंह ,राम सिंह
- जन्म स्थान – राजस्थान के जोधपुर
- विवाह – 23 मार्च, 1560 ई.
- पत्नी – मेवाड़ के महाराणा उदयसिंह की पुत्री बाईजीलाल सूरजदे
- शासक – मारवाड़मृत्यु – 11 जनवरी 1581 ई
- शासन काल –1562 से 1581 ई. (19 वर्ष)
- उपाधियां – मारवाड़ का प्रताप, प्रताप का अग्रगामी, इतिहास का भूला बिसरा राजा।
राव चंद्रसेन और महाराणा प्रताप:-
राव चंद्रसेन और महाराणा प्रताप दोनों ही मुगल बादशाह अकबर के साथ अपने आजीवन संघर्ष के लिए प्रसिद्ध हैं। चंद्रसेन और महाराणा प्रताप दोनों को अपने भाइयों के विरोध का सामना करना पड़ा। महाराणा प्रताप की तरह मारवाड़ के कई हिस्से चंद्रसेन के कब्जे में नहीं थे। समानताओं के साथ-साथ दोनों शासकों की गतिविधियों में मूलभूत अंतर था। कि दोनों शासकों ने अपने-अपने पहाड़ी इलाकों में रहकर मुगलों को खूब चौंका दिया। लेकिन महाराणा प्रताप के सम्मान में चंद्रसेन चावंड जैसी कोई राजधानी स्थापित नहीं की जा सकी।
राव चंद्रसेन और तुर्क अकबर:-
अकबर ने विभाजन और शासन की नीति के तहत अपने भाई उदय सिंह को जोधपुर का राजा घोषित किया।और हुसैनकुली को सेना लेकर सिवाना पर हमला करने के लिए भेजा,पर उस सेना को चन्द्रसेन के सहयोगी रावल सुखराज और पताई राठौड़ ने जबर्दस्त मौत दी।दो साल के निरंतर युद्ध के बाद, अकबर ने थककर, कई बार चंद्रसेन को जोधपुर लौटने और अपने अधीन एक बड़ा मनसबदार बनाने के लिए प्रलोभित किया। लेकिन स्वतंत्रता प्रेमी चंद्रसेन ने इसे स्वीकार नहीं किया। निराश होकर अकबर ने जलाल खान के नेतृत्व में आगरा से तीसरी बड़ी सेना भेजी, लेकिन राव चंद्रसेन के वीरों ने जलाल खान को मार डाला। सके बाद अकबर ने चौथी सेना शाहबाज खां के नेत्रत्व में भेजी,जिसने 1576 ईस्वी में बड़ी लड़ाई के बाद सिवाना पर कब्जा कर लिया,और राव चन्द्रसेन पहाड़ों में चले गये।
राव चंद्रसेन की उपाधियां:-
- मारवाड़ का प्रताप:– मारवाड़ का प्रताप कहाँ गया क्योंकि उसने कभी अकबर की अधीनता स्वीकार नहीं की, एक पहाड़ी जीवन बिताया लेकिन अपने स्वाभिमान को जीवित रखा, अपनी अंतरात्मा को जीवित रखा लेकिन कभी भी मुगलों के सामने सिर नहीं झुकाया। महाराणा प्रताप की तरह बहादुर। चंद्रसेन और प्रताप के विचार समान थे, प्रताप भी उनके प्रेरणा स्रोत रहे हैं, तो मारवाड़ के प्रताप कहां हैं।
- प्रताप का अग्रगामी:– राव चंद्रसेन का जन्म और निधन प्रताप से पहले हुआ था इसलिए हम इन्हें प्रताप के पूर्वज कह सकते हैं । चंद्रसेन ने कभी अपनी हार नहीं मानी और पहाड़ों में अपना जीवन व्यतीत किया उसी प्रकार प्रताप ने भी यही मार्ग चुना इसलिए हम इन्हें प्रताप के अग्रगामी कहते है।
- भुला बिसरा राजा:– महाराणा प्रताप के बारे में खूब जानकारी मिलेगी प्रताप के नाम के अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे, राष्ट्रीय बस स्टैंड ,डाक टिकट और उनके बारे में विदेशों में भी पढ़ाया जाता है उनके नाम से कई राष्ट्रीय उद्यान, सवारी रेलगाड़ी, बहुत जानकारी मिलेगी यह सब स्वाभाविक है क्योंकि प्रताप एक महान राजा था। प्रताप के प्रेरणा स्रोत रहे उन्होंने अपने स्वाभिमान अपने जमीर को जिंदा रखा लेकिन कभी मुगलों के आगे सिर नहीं झुकाया परन्तु राव चंद्रसेन को इतिहासकारों ने भुला दिया। इसे हम इतिहासकरो की गद्दारी कहे या हमारा दुर्भाग्य लेकिन इनके संघर्ष, बलिदान त्याग को इतिहास में कोई महत्त्व नहीं दिया गया, इसलिए इन्हें भुला बिसरा राजा कहा जाता है।
- प्रताप का प्रदर्शक:– यानी प्रताप को राह दिखाने वाले, प्रताप के प्रेरणा स्रोत।विस्मृत नायक:– विस्मृत यानी भूल जाना और नायक यानी श्रेष्ठ पुरुष।
राव चन्द्रसेन की कुल 11 रानियाँ:-
- रानी कल्याण देवी
- रानी कछवाही सौभाग्यदेवी
- रानी भटियाणी सौभाग्यदेवी
- रानी सिसोदिनी जी सूरजदेवी
- रानी कछवाही कुमकुम देवी
- रानी औंकार देवी
- रानी भटियाणी प्रेमलदेवी
- रानी भटियाणी सहोदरा
- रानी भटियाणी जगीसा
- रानी सोढी मेघां
- रानी चौहान पूंगदेवी
- राव चन्द्रसेन के 3 पुत्र:-
- राव रायसिंह
- उग्रसेन जी
- आसकरण जी
चंद्रसेन के खिलाफ मुगलों के अभियान:-
- 1571 ई. में, जब शाही सेना की सेना ने भाद्रजून पर हमला किया तो वह सिवाना गया।1572 ई. में जहां एक ओर गुजरात में विद्रोह हुआ वहीं दूसरी ओर महाराणा प्रताप के शासक बनने से मेवाड़ पर भी आक्रमण का खतरा पैदा हो गया।1573 ई. में अकबर ने जगत सिंह, केशवदास मेड़िया, बीकानेर के राय सिंह आदि को शाहकुली खाँ के साथ चन्द्रसेन को अपने अधीन करने के लिए भेजा। यह सेना सोजत में चंद्रसेन के भतीजे कल्ला को हराकर सिवाना पहुंची।
- 1575 ईसवी ने जलाल खान के नेतृत्व में सिवाना की तरफ एक बड़ी सेना भेजी जिसमें सैयद अहमद, सैयद हाशिम, शिमाल खां आदि अमीर भी शामिल थे ! लंबे संघर्ष के दौरान चंद्रसेन अपने सहयोगी देवीदास के साथ मुगल सेना पर आक्रमण कर दिया ! इस आक्रमण मैं जलाल खान मारा गया शाही सेना को धक्का लगा इस प्रकार 1575 ईसवी में सिवाना के दुर्ग पर अकबर का अधिकार हो गया था !
- 11 जनवरी 1581 ईस्वी में राव चंद्रसेन की मृत्यु हो गई !
- चंद्रसेन ने 1580 ईस्वी में इस सेना सेना का सामना किया किंतु असफल होकर होकर पुने: पहाड़ों में लौटना पड़ा ! बाद में चंद्रसेन ने 7 जुलाई 1580 ईस्वी को सोजत पर हमला कर दिया ! सोजत पर अधिकार कर उसने सारण के पर्वतों में अपना निवास कायम कर लिया !
- 11 जनवरी 1581 ईस्वी में राव चंद्रसेन की मृत्यु हो गई !
गिरी सुमेल का युद्ध:-
1544 ई. में मल देवे और शेरशाह सूरी के बीच था। इस युद्ध में राव मालदेव के वीर सेनापति जीटा और कुपा थे। शेर शाह सूरी ने गिरि और सुमैल की लड़ाई जीत ली, लेकिन ज़ेटा और कुपा और राव मालदेव के वीर सैनिकों की वीरता और वीरता को देखकर शेर शाह सूरी ने कहा कि “मैं एक मुट्ठी बाजरा के लिए भारत का राज्य खो देता।
राव चंद्रसेन के भाइयों का विद्रोह:-
जैसे ही चन्द्रसेन जोधपुर की गद्दी पर बैठा, उसके बड़े भाई राम और उदय सिंह ने गद्दी के लिए विद्रोह कर दिया। राम को चंद्रसेन ने सैन्य कार्रवाई से मेवाड़ के पहाड़ों पर भगा दिया और उदय सिंह, जो उनके साले थे, उन्हें फलोदी की जागीर देकर संतुष्ट किया। राम ने अकबर से सहायता ली। अकबर की सेना राम की सहायता के लिए मुगल सेनापति हुसैन कुली खान के नेतृत्व में जोधपुर पहुंची और जोधपुर के मेहरानगढ़ किले को घेर लिया। आठ महीने के संघर्ष के बाद राव चंद्रसेन ने जोधपुर का किला खाली कर दिया।
नागौर का दरबार:-
1570 में अपनी अजमेर यात्रा के समय अकबर मारवाड़ क्षेत्र में दुष्काल की खबर सुनकर नागौर पहुंचा ! दुष्काल निवारणार्थ एक तालाब खुदवाया जो “शुक्र तालाब” के नाम से जाना जाता है ! इस दरबार में मारवाड़ की राजनीति का अध्ययन किया गया था ! राव चंद्रसेन नागौर दरबार नहीं गया 1570 में अकबर के दरबार में गया वहां पर अकबर के व्यवहार एवं अपने प्रतिस्पर्धी उदय सिंह को देखकर नागौर से वापस चला गया !
राव चंद्रसेन की मृत्यु:-
राव चंद्रसेन ने 11 जनवरी, 1581 (विक्रम संवत 1637 माघ सुदी सप्तमी) को मारवाड़ के महान् स्वतंत्रता सेनानी का सारण सिचियाई के पहाड़ों में 39 वर्ष की अल्पायु में उनका स्वर्गवास हो गया। राव चंद्रसेन की समाधि भाद्राजूण में स्थित है| राव चंद्रसेन के लिए संकटकालिन राजधानी के रूप में सिवाणा ( बाड़मेर ) तथा भाद्राजूड़ ( जालौर ) को महत्वपूर्ण माना जाता है।
प्रश्न. राव चंद्रसेन की माता का क्या नाम हैं?
उत्तर:- राव मालदेव
प्रश्न. राव चंद्रसेन के पिता का क्या नाम हैं?
उत्तर:- राव मालदेव
प्रश्न. राव चंद्रसेन के दादा जी का क्या नाम हैं?
उत्तर:- राव गांगा
प्रश्न. राव चंद्रसेन के भाई का क्या नाम हैं?
उत्तर:- उदय सिंह ,राम सिंह
प्रश्न. राव चंद्रसेन की मृत्यु कब हुई?
उत्तर:- 11 जनवरी 1581 ई
प्रश्न. राव चंद्रसेन का जन्म कहाँ हुआ?
उत्तर:- राजस्थान के जोधपुर
प्रश्न. राव चंद्रसेन की पत्नी का क्या नाम हैं?
उत्तर:- बाईजीलाल सूरजदे
प्रश्न. राव चंद्रसेन का शासन काल हैं?
उत्तर:- 1562 से 1581 ई.
प्रश्न. राव चंद्रसेन का विवाह कब हुआ?
उत्तर:- 23 मार्च, 1560 ई.
प्रश्न. राव चंद्रसेन की उपाधियां क्या हैं?
उत्तर:- मारवाड़ का प्रताप, प्रताप का अग्रगामी, इतिहास का भूला बिसरा राजा।
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