कबीर दास का जीवन परिचय :- भारत के महान संत और आध्यात्मिक कवि कबीर दास का जन्म वर्ष 1440 में हुआ था। इस्लाम के अनुसार ‘कबीर’ का अर्थ महान होता है। उनके असली माता-पिता कौन थे, इसका कोई प्रमाण नहीं है, लेकिन ऐसा माना जाता है कि उनका पालन-पोषण एक गरीब मुस्लिम परिवार में हुआ था। बाद में इस बालक को कबीर कहा जाने लगा। कुछ लोगों का कहना है कि वे जन्म से मुसलमान थे और युवावस्था में स्वामी रामानंद के प्रभाव से उन्हें हिंदू धर्म की बातें मालूम हुई एक दिन, रात के समय कबीर दास पंचगंगा घाट की सीढ़ियों पर गिर पड़े।कबीर के अनुसार हर जीवन का दो धार्मिक सिद्धातों से रिश्ता होता है (जीवात्मा और परमात्मा)। मोक्ष के बारे में उनका विचार था कि ये इन दो दैवीय सिद्धांतों को एक करने की प्रक्रिया है।कबीर के द्वारा रचित सभी कविताएँ और गीत कई सारी भाषाओं में मौजूद है। कबीर और उनके अनुयायियों को उनके काव्यगत धार्मिक भजनों के अनुसार नाम दिया जाता है जैसे बनिस और बोली। विविध रुप में उनके कविताओं को साखी, श्लोक (शब्द) और दोहे (रमेनी) कहा जाता है। आइए जानते हैं कबीर दास जी का जीवन परिचय।
कबीरदास की जीवनी:-
- पूरा नाम – संत कबीरदास
- उपनाम नाम – कबीरा, कबीर साहब
- जन्म – सन 1398 (लगभग)
- जन्म भूमि – लहरतारा ताल, काशी
- मृत्यु – सन 1518 (लगभग)
- मृत्यु स्थान – मगहर, उत्तर प्रदेश
- पिता – नीरुमाता -नीमा
- पत्नी – लोईगुरू – रामानंद
- संतान – कमाल (पुत्र), कमाली (पुत्री)
- कर्म भूमि – काशी, बनारस
- कर्म-क्षेत्र – समाज सुधारक कवि
- मुख्य रचनाएँ – साखी, सबद और रमैनीपेशा – संत, विद्दंत विचारक, भक्तिकाल के प्रमुख कवि और अच्छे समाज सुधारक
- विषय – सामाजिक
- भाषा – अवधी, सधुक्कड़ी, पंचमेल खिचड़ी
- शिक्षा – निरक्षर
कबीर दास का जन्म स्थान:-
कबीर दास का जन्म मगहर, काशी में हुआ था। कबीर दास ने वहाँ भी अपनी रचना में उल्लेख किया है: “पहले दर्शन मगहर पायो पुनी काशी बस आई” अर्थात उन्होंने काशी में रहने से पहले मगहर देखा था और आज मगहर वाराणसी के पास है और कबीर का मकबरा भी है।कबीर के जन्म और उनके धर्म को लेकर लोगों में भले ही विवाद हो लेकिन उनकी शिक्षा और विचार इसके मोहताज नहीं। भक्तिकाल के प्रमुख कवि और समाज सुधारक कबीर की भाषा सधुक्कड़ी थी, लेकिन इनके साहित्य में ब्रज, पंजाबी, अवधि, राजस्थानी और हरियाणवी खड़ी बोली देखने को मिलती हैं।
कबीरदास की शिक्षा:-
- कहा जाता है कि कबीर को बचपन में पढ़ने-लिखने का कोई शौक नहीं था और साथ ही उन्हें खेलों में भी कोई दिलचस्पी नहीं थी। जब धीरे-धीरे बड़े होने लगे तो उन्हें इस बात का आभास हुआ कि वह ज्यादा पढ़े-लिखे नहीं हैं वह अपनी अवस्था के बालकों से एकदम भिन्न थे। परिवार में अत्यधिक गरीबी के कारण उसके माता-पिता भी उसे शिक्षित करने की स्थिति में नहीं थे। इसलिए कबीर ने अपने जीवन में कभी किताबी शिक्षा नहीं ली।
- कागज को मत छुओ, कमल को मत छुओ।पोथी पढ़-पढ़ी जग मुआ, पंडित भय न कोई।ढाई घंटे का प्रेम पढ़ो तो पंडित बनो।
- कबीर तेरी झोपरी, गलकट्टों के पास।जो करेगा वही भरेगा, तुम उदास क्यों हो।
कबीर दास का वैवाहिक जीवन:-
संत कबीरदास का विवाह लोई नाम की कन्या से हुआ था। विवाह के बाद कबीर और लोई को दो संतानें हुई, जिसमें एक लड़का व दूसरी लड़की। कबीर के लड़के का नाम कमाल तथा लड़की का नाम कमाली था। इस पंथ के अनुसार कमाल उसका शिष्य था और कमाली तथा लोई उनकी शिष्या थी। लोई शब्द का प्रयोग कबीर ने एक जगह कंबल के रूप में भी किया है कबीर की पत्नी और संतान दोनों थे।एक जगह लोई को पुकार कर कबीर कहते हैं.
संत कबीर का साहित्य:-
- कबीर दास जी के नाम से मिले ग्रंथों की संख्या भिन्न है। एचएल विल्सन के अनुसार कबीर के नाम से 8 ग्रंथ हैं। वहीं, बिशप जीएच वेस्टकॉट ने कबीर के नाम से 84 ग्रंथों की सूची जारी की है।कबीर दास के भाषणों का संग्रह, जिसे “बीजक” के नाम से जाना जाता है, को तीन भागों में विभाजित किया गया है, जो इस प्रकार हैं, रमानी, सबद और सरवी।कबीर का अनुभूत सत्य अंधविश्वासों पर बारूदी मुकाबला था। उनके द्वारा बोला गया था कभी ऐसा जो आज तक के परिवेश पर सवालिया निशाना बनकर चोट भी करता था और खोट भी निकालता था।
- कबीरदास जी हिंसा,छुआ-छूत, जाति-वादी के भेद भाव के हमेशा विरोधी रहे है। ये अहिंसा,सदाचार तथा सत्य के प्रशंसक थे। अपनी सरल स्वाभाव तथा संत प्रवृति के होने के कारण,कबीर जी का आज विदेशो में भी सम्मान है।
कबीर दास जी का जीवन दर्शन:-
यह उनके जीवन के बारे में उनके दर्शन का प्रतिबिंब है। उनका लेखन मुख्य रूप से पुनर्जन्म और कर्म की अवधारणा पर आधारित था। कबीर के जीवन के बारे में यह स्पष्ट था कि वे बहुत ही सरल तरीके से जीवन जीने में विश्वास करते थे। उनका एक विशेष संदेश था कि चाहे आप हिंदू भगवान या मुसलमान भगवान के नाम का जाप करें, किंतु सत्य यह है कि ऊपर केवल एक ही परमेश्वर है जो इस खूबसूरत दुनिया के निर्माता है।
कबीर दास की भाषा और शैली:-
कबीर दास की भाषा शैली में उन्होंने अपनी बोलचाल की भाषा का ही प्रयोग किया है, भाषा पर कबीर का अथाह अधिकार था। वह जिस रूप में व्यक्त करना चाहता था उसे व्यक्त करने की क्षमता रखता था। कबीर अपने रिवर्स बेस के लिए मशहूर हैं। इनकी भाषा में वर्णनात्मक, चित्रात्मक, प्रतीकात्मक, भावात्मक आदि शैलियों का प्रयोग किया गया है। कबीर ने जिन तत्वों को अपनी रचना से ध्वनित करना चाहा है, उसके लिए कबीर की भाषा से ज्यादा साफ और जोरदार भाषा की संभावना भी नहीं है.
कबीर दास की मृत्यु:-
कबीर दास की मृत्यु काशी के बजाय मगहर में केवल इस वजह से हुयी थी क्योंकि वो वहाँ जाकर लोगों के अंधविश्वास और मिथक को तोड़ना चाहते थे। 1575 विक्रम संवत में हिन्दू कैलेंडर के अनुसार माघ शुक्ल एकादशी के वर्ष 1518 में जनवरी के महीने में मगहर में उन्होंने दुनिया को अलविदा कहा। कबीर दास ने काशी के निकट मगहर में अपने प्राण त्याग दिए। ऐसी मान्यता है कि मृत्यु के बाद उनके शव को लेकर भी विवाद उत्पन्न हो गया था हिंदू कहते हैं कि उनका अंतिम संस्कार हिंदू रीति से होना चाहिए और मुस्लिम कहते थे कि मुस्लिम रीति से। इसी विवाद के चलते जब उनके शव से चादर हट गई तब लोगों ने वहां फूलों का ढेर पड़ा देखा और बाद में वहां से आधे फुल हिंदुओं ने उठाया और आधे फूल मुसलमानों ने।
कबीर दास की मुख्य रचनाएं:-
- साखी
- सबद
- रमैनी
कबीर दास की अन्य रचनाएं:-
- बलख की फैज़
- वारामासी
- बीजक
- भक्ति के अंग
- मुहम्मद बोध
- आरती कबीर कृत
- अठपहरा
- कबीर की वाणी
- कबीर अष्टक
- अक्षर खंड की रमैनी
- अलिफ़ नामा
- कबीर गोरख की गोष्ठी
- उग्र गीता
- चौका पर की रमैनी
- जन्म बोध
- कर्म कांड की रमैनी
- कबीर परिचय की साखी
- काया पंजी
- अनुराग सागर
- अमर मूल
- अर्जनाम कबीर का
- चौतीसा कबीर का
- छप्पय कबीर का
- तीसा जंत्र
- पुकार कबीर कृत
- नाम महातम की साखी
- निर्भय ज्ञान
- पिय पहचानवे के अंग
- व्रन्हा निरूपण
- विवेक सागर
- शब्द अलह टुक
- सननामा
- राम रक्षा
- मगल बोध
- रमैनी
- राम सार
- रेखता
- ज्ञान सरोदय
- शब्दावली
- ज्ञान चौतीसी
- स्वास गुज्झार
- हिंडोरा वा रेखता
- हस मुक्तावालो
- ज्ञान सम्बोध
- ज्ञान स्तोश्र
कबीर दास के दोहे:-
हाड जले लकड़ी जले जले जलावन हार ।
कौतिकहारा भी जले कासों करूं पुकार ॥
जिहि घट प्रेम न प्रीति रस, पुनि रसना नहीं नाम।
ते नर या संसार में , उपजी भए बेकाम ॥
सातों सबद जू बाजते घरि घरि होते राग ।
ते मंदिर खाली परे बैसन लागे काग ॥
कबीर रेख सिन्दूर की काजल दिया न जाई।
नैनूं रमैया रमि रहा दूजा कहाँ समाई ॥
नैना अंतर आव तू, ज्यूं हौं नैन झंपेउ।
ना हौं देखूं और को न तुझ देखन देऊँ॥
बिन रखवाले बाहिरा चिड़िये खाया खेत ।
आधा परधा ऊबरै, चेती सकै तो चेत ॥
तेरा संगी कोई नहीं सब स्वारथ बंधी लोइ ।
मन परतीति न उपजै, जीव बेसास न होइ ॥
मैं मैं मेरी जिनी करै, मेरी सूल बिनास ।
मेरी पग का पैषणा मेरी गल की पास ॥
करता था तो क्यूं रहया, जब करि क्यूं पछिताय ।
बोये पेड़ बबूल का, अम्ब कहाँ ते खाय ॥
कबीर नाव जर्जरी कूड़े खेवनहार ।
हलके हलके तिरि गए बूड़े तिनि सर भार॥
झूठे को झूठा मिले, दूंणा बंधे सनेह
झूठे को साँचा मिले तब ही टूटे नेह ॥
कबीर सो धन संचिए जो आगे कूं होइ।
सीस चढ़ाए पोटली, ले जात न देख्या कोइ ॥
धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय,
माली सींचे सौ घड़ा, ॠतु आए फल होय।
माला फेरत जुग भया, फिरा न मन का फेर,
कर का मनका डार दे, मन का मनका फेर।
तिनका कबहुँ ना निन्दिये, जो पाँवन तर होय,
कबहुँ उड़ी आँखिन पड़े, तो पीर घनेरी होय।
साधु ऐसा चाहिए, जैसा सूप सुभाय,
सार-सार को गहि रहै, थोथा देई उड़ाय।
FAQ
प्रश्न. कबीर दास के पिता का क्या नाम हैं?
उत्तर:- नीरु
प्रश्न. कबीर दास के माता का क्या नाम हैं?
उत्तर:- नीमा
प्रश्न. कबीर दास के पत्नी का क्या नाम हैं?
उत्तर:- लोई
प्रश्न. कबीर दास के गुरु का क्या नाम हैं?
उत्तर:- रामानंद
प्रश्न. कबीर दास की मृत्यु कब हुई?
उत्तर:- सन 1518
प्रश्न. कबीर दास जन्म कब हुआ?
उत्तर:- सन 1398
प्रश्न. कबीर दास की मृत्यु कहाँ हुई?
उत्तर:- मगहर, उत्तर प्रदेश
प्रश्न. कबीर दास की कर्मभूमि कौनसी है?
उत्तर:- काशी, बनारस
प्रश्न. कबीर दास का कर्म क्षेत्र कौनसी है?
उत्तर:- समाज सुधारक कवि
प्रश्न. कबीर दास की मुख्य रचनाए है ?
उत्तर:- साखी, सबद और रमैनी
प्रश्न. कबीर दास की भाषा कौनसी है ?
उत्तर:- अवधी, सधुक्कड़ी, पंचमेल खिचड़ी
प्रश्न. कबीर दास की शिक्षा कौनसी है ?
उत्तर:- निरक्षर
प्रश्न. कबीर दास विषय कोनसा है ?
उत्तर:- सामाजिक
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